उज्जैन में मुख्यमंत्री के बेटे का सामूहिक विवाह: सादगी, सामाजिक समानता और भारतीय परंपराओं का अनोखा संगम
उज्जैन में मुख्यमंत्री के बेटे का सामूहिक विवाह: सादगी, सामाजिक समानता और भारतीय परंपराओं का अनोखा संगम
उज्जैन।मध्यप्रदेश के इतिहास में 30 नवंबर 2025 का दिन एक अनूठे और यादगार सामाजिक आयोजन के रूप में दर्ज हो गया, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के छोटे बेटे अभिमन्यु यादव ने उज्जैन में आयोजित एक सामूहिक विवाह सम्मेलन में वैदिक विधि से अपनी पत्नी इशिता के साथ सात फेरे लिए। यह आयोजन सिर्फ एक पारिवारिक समारोह नहीं था; यह सामाजिक समरसता, सादगी और समानता का ऐसा उदाहरण बन गया जिसने पूरे प्रदेश में चर्चा का केंद्र बना दिया।
इस सामूहिक विवाह सम्मेलन में कुल 22 जोड़े विवाह बंधन में बंधे। मुख्यमंत्री के बेटे का उसी मंच पर, उसी वैदिक पद्धति से, सामान्य परिवारों के युवाओं के साथ विवाह सम्पन्न होना उस सामाजिक संदेश को मजबूत करता है, जिसे आज का समाज बड़ी उम्मीद से देख रहा है—कि विवाह जीवन का संस्कार है, और इसमें आर्थिक दिखावे या वर्गीय भेदभाव की कोई आवश्यकता नहीं।
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बैलगाड़ी में बारात और सादगी का असाधारण संदेश
अभिमन्यु यादव की बारात का सबसे चर्चित दृश्य वह रहा जब वे अपनी शादी के लिए बैलगाड़ी में बारात लेकर पहुंचे। मुख्यमंत्री के बेटे की ऐसी सरल और ग्रामीण परंपरा से भरी एंट्री ने लोगों के मन में उत्साह, आश्चर्य और सम्मान का अनोखा मिश्रण पैदा कर दिया। कई बुजुर्गों ने कहा कि वे पहली बार किसी बड़े राजनीतिक परिवार के बेटे को इतनी सादगी में विवाह रचाते देख रहे हैं।
बैलगाड़ी, शहनाई, परंपरागत वाद्य, गाँव की झलक… यह सब मिलकर ऐसा प्रतीक बना मानो समारोह यह कह रहा हो कि भारतीय संस्कृति का असली सौंदर्य भव्यता नहीं बल्कि उसकी सरलता और पारिवारिक अपनत्व में है।
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सामूहिक विवाह: सामाजिक समानता का चित्र
इस आयोजन की सबसे बड़ी खासियत थी कि मुख्यमंत्री के बेटे ने उसी मंडप में विवाह किया जहाँ ड्राइवर, मजदूर, किसान और निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों के अन्य 21 जोड़े बैठे थे। किसी भी जोड़े के लिए मंच, विधि, समय या अवसर में कोई भेदभाव नहीं किया गया।
मंच के नीचे लोग यह कहते हुए सुनाई दिए—
“एक मंडप के नीचे मुख्यमंत्री का बेटा भी फेरे ले रहा है और एक मजदूर का बेटा भी। यही तो असली समानता है।”
समारोह में मौजूद सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस आयोजन को “प्रगतिशील संदेश” बताते हुए कहा कि इस प्रकार के विवाह उन युवाओं को प्रेरणा देंगे जो बढ़ते विवाह खर्च के कारण आर्थिक बोझ महसूस करते हैं।
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विशेष अतिथियों की उपस्थिति, लेकिन आयोजन फिर भी ‘जनपक्षीय’
कार्यक्रम में आध्यात्मिक गुरू संतों, सामाजिक हस्तियों और कई बड़े राजनीतिक नेताओं की उपस्थिति रही। बाबा रामदेव, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जैसी हस्तियों ने युवाओं को आशीर्वाद दिया। कई राष्ट्रीय स्तर के नेता इस विवाह के साक्षी बने, लेकिन फिर भी यह आयोजन अपने मूल चरित्र में जनसुलभ और सहज बना रहा।
ना कोई भव्य मंच, ना कोई विशेष VIP एरिया।
सभी लोग एक ही पंडाल में, एक ही फर्श पर बैठे—यह दृश्य अपने आप में दुर्लभ था।
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विवाह की वैदिक परंपरा और संस्कृति की झलक
सभी 22 जोड़ों के विवाह संस्कार एक ही समय में, वैदिक पद्धति के अनुसार पूरे किए गए। पंडाल के भीतर वेदों के मंत्र गूंजते रहे।
हवन, फेरे, कन्यादान, आशीर्वाद—हर अनुष्ठान में परंपरा की गहरी छाप थी।
अभिमन्यु–इशिता समेत सभी जोड़े एक सरल, शांत, आध्यात्मिक वातावरण में विवाह बंधन में बंधे।
विवाह स्थलों की वह अव्यवस्था, शोरगुल, बैंडबाजा और भीड़भाड़ यहाँ देखने को नहीं मिली। इसके बजाय पंडाल में अनुशासन, संतुलन और शांति की अनुभूति होती रही।
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आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को लाभ
सामूहिक विवाह सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि आयोजन समिति ने प्रत्येक नवविवाहित जोड़े को गृहस्थ जीवन शुरू करने के लिए आवश्यक सामग्री—जैसे बर्तन, चादरें, कपड़े, छोटे घरेलू उपकरण, पूजन सामग्री—इत्यादि प्रदान की।
इससे कई परिवारों का आर्थिक बोझ कम हुआ और विवाह के बाद नए घर की शुरुआत सरल हो सकी।
कई परिवारों ने यह कहा कि यदि सामूहिक विवाह न होता, तो वे व्यक्तिगत विवाह करने की स्थिति में नहीं थे।
इस दृष्टि से यह समारोह सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि कई परिवारों के लिए जीवन बदल देने वाला अवसर बना।
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मुख्यमंत्री मोहन यादव का दृष्टिकोण और संदेश
समारोह के दौरान मुख्यमंत्री मोहन यादव ने न केवल आयोजन की सादगी की सराहना की बल्कि यह संदेश भी दिया कि समाज को ऐसी ही पहलें बढ़ानी चाहिए।
उन्होंने कहा—
“विवाह उत्सव है, लेकिन दिखावा नहीं होना चाहिए। समाज का दायित्व है कि वह परंपराओं को जीवित रखते हुए आर्थिक बोझ कम करे।”
उन्होंने यह भी बताया कि उनका परिवार वर्षों से सामूहिक विवाह कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता रहा है और यह उनका व्यक्तिगत निर्णय था कि उनका पुत्र भी इसी परंपरा का हिस्सा बने।
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उज्जैन के लिए गर्व का क्षण
उज्जैन—जो अपनी आध्यात्मिकता, महाकाल की नगरी और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है—ऐसे अवसर का साक्षी बनकर गर्व महसूस कर रहा था।
लोगों ने कहा कि जिस शहर ने करोड़ों श्रद्धालुओं को कुंभ में संभाला, वह इस तरह सामाजिक एकता और निरीह वर्ग के सम्मान का उदाहरण बनते देख और अधिक गौरवान्वित है।
नगरवासियों की भावनाएँ भी अनूठी थीं।
सारा शहर इस बात का चर्चा में था कि प्रदेश का शीर्ष परिवार भी उन्हीं आयोजनों में शामिल होकर विवाह कर रहा है, जिनके माध्यम से समाज के कमजोर और मेहनतकश वर्ग को सहारा मिलता है।

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