खनिज माफिया व अफसरों की जुगलबंदी से बुंदेलखंड में फल—फूल रहा अवैध खनन का कारोबार

 खनिज माफिया व अफसरों की जुगलबंदी से बुंदेलखंड में फल—फूल रहा अवैध खनन का कारोबार .

भोपाल।

टीकमगढ़ जिले के कारी वन क्षेत्र में डायस्फोर और पायरोफिलाइट जैसे बेशकीमती खनिजों के अवैध खनन का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। वन विभाग ने इस अवैध खनन को अतिक्रमण बताकर मामला रफा-दफा कर दिया। 



सूत्रों के मुताबिक,स्थानीय कांग्रेस विधायक यादवेंद्र सिंह ने हाल ही में जिला कलेक्टर को इस अवैध गतिविधि की शिकायत दी थी। एक अन्य शिकायत एपीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ शुभरंजन सेन को भी की गई। जिसके बाद जांच तो हुई,परन्तु विभागीय कार्रवाई ठेकेदार कंपनी के पक्ष में झुकती दिखी।


अनुबंध निगम से,ठेका निजी फर्म को


मामले की तह में जाने पर खुलासा हुआ कि खनिज का अनुबंध मप्र खनिज निगम और वन विभाग के बीच हुआ था। खनन की अनुमति मिलते ही निगम ने यह ठेका ओम कंस्ट्रक्शन नामक निजी कंपनी को दे दिया। इसके पास खनिज भंडारण का लाइसेंस ही नहीं है। इसके चलते ओम कंस्ट्रक्श्न ने खनिज ढुलाई और भंडारण का काम,पेटी कांट्रेक्ट पर एक अन्य फर्म गजानन कंस्ट्रक्शन को सौंप दिया। 


झांसे का नया रास्ता, तुलाई सिस्टम भी नहीं

शिकायत में कहा गया है कि कंपनी ने मंजूर मार्ग छोड़कर बीट नंबर-15 से नया रास्ता बना लिया, ताकि खनिज का अवैध परिवहन आसान हो सके। खनिज निगम को खदान क्षेत्र में धर्मकांटा (वजन तौल प्रणाली) लगाना था, लेकिन 12 किमी क्षेत्र में भी तुलाई की व्यवस्था नहीं है। खनिज निकासी हस्तलिखित पर्चियों पर आधारित है, जिससे चोरी-छुपे खनन की गुंजाइश और बढ़ गई है। बताया जाता है कि जिस वाहन को 19 मीट्रिक टन की अनुमति है,उससे 35 मीट्रिक टन तक की ढुलाई हो रही है।


इजाजत 5 हेक्टेयर की, खुदाई कई गुना ज्यादा


अधिकृत स्वीकृति के अनुसार कारी वन क्षेत्र में केवल 5 हेक्टेयर क्षेत्र में डायस्फोर व पायरोफिलाइट की खुदाई की अनुमति थी। इसमें भी 7.5 मीटर चौड़ा वनीकरण क्षेत्र सुरक्षित रखा जाना था,लेकिन निजी फर्म ने खदान की सीमा लांघते हुए कई हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में खुदाई कर दी। अवैध खनन से वन्यजीवों के रहवास भी प्रभावित हो रहे हैं। अवैध खनन व इससे वन्य जीवों पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर प्रमाण स्वरूप गूगल सैटेलाइट इमेज भी प्रशासन को सौंपीं।


अवैध खनन पर ‘अतिक्रमण’ की ढाल

इन शिकायतों पर एक्शन लेते हुए अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) शुभरंजन सेन ने जांच के आदेश तो दिए,पर स्थानीय अमले ने गूगल इमेज में दर्ज खुदाई को “अतिक्रमण” करार दिया। कारी वन क्षेत्र के डीएफओ आर.के.वर्मा कहते हैं—खनन स्वीकृत क्षेत्र में हुआ,लेकिन ठेकेदार ने अन्य जगह मलबा डाला, जिस पर अतिक्रमण का केस दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट मुख्यालय को भेज दी गई है।


खजुराहो मिनरल्स भी जांच के दायरे में

डायस्फोर-पायरोफिलाइट उत्खनन क्षेत्र में सक्रिय छतरपुर,बुंदेलखंड की ही एक अन्य फर्म खजुराहो मिनरल्स की गतिविधियां भी सवालों के दायरे में रही हैं। फर्म पर फर्जी तरीके से ग्राम पंचायत की अनुमति व कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर खदान हासिल करने के आरोप लगे। मध्य प्रदेश राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो इन्हीं आरोपों से जुड़ी एक शिकायत पर जांच भी कर रहा है। 


बुंदेलखंड में डायस्फोर-पायरोफिलाइट के भंडार


भू-वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में टीकमगढ़,छतरपुर, दमोह और पन्ना जिलों में डायस्फोर-पायरोफिलाइट खनिज व्यापक रूप से पाए जाते हैं। विशेषकर कारी,जतारा और मोहनगढ़ क्षेत्रों में इनका भंडार उच्च ग्रेड का माना जाता है। यहां से निकला खनिज देश-विदेश के सिरेमिक, रिफ्रैक्टरी, पेंट व ग्लास उद्योगों तक पहुंचता है।


अंंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी है मांग


ऐलुमिनियम ऑक्साइड-हाइड्रॉक्साइड से बना डायस्फोर ऐलुमिना उत्पादन का महत्वपूर्ण स्रोत है। औद्योगिक रूप में इसकी कीमत लगभग 6 से 7 हजार रुपए प्रति टन है,जबकि रत्न ग्रेड डायस्फोर की अंतरराष्ट्रीय कीमत लगभग 42,000 से 1.68 लाख रुपए प्रति कैरट के बीच है। इसी तरह,औद्योगिक ग्रेड पायरोफिलाइट भारत में पांच से दस हजार रुपए प्रति टन और वैश्विक बाजार में 34 हजार रुपए प्रति टन तक है। जिसका उपयोग सिरेमिक, टाइल, रिफ्रैक्टरी और पेंट उद्योगों में होता है।

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