यूजीसी भी नहीं जान सका मप्र की इस यूनिवर्सिटी का राज, वैदिक के नाम पर अंग्रेजी शिक्षा पर जोर
यूजीसी भी नहीं जान सका मप्र की इस यूनिवर्सिटी का राज, वैदिक के नाम पर अंग्रेजी शिक्षा पर जोर
भोपाल। देश में ज्यादातर विश्वविद्यालय केंद्र या राज्य सरकार के अधीन रहकर सरकारी नियम—कायदों से चलते हैं,लेकिन मप्र का महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय कुछ अलग है। इसके अपने नियम—कानून हैं। विश्वविद्यालय निजी है या राज्य सरकार के अधीन,यह रहस्य बीते 30सालों में देश के विश्वविद्यालयों को नियंत्रित करने वाला यूजीसी भी नहीं जान सका।
संस्थान की डिग्री को लेकर संशय कायम
राहतगढ़,सागर निवासी शरद कुमार भारद्वाज ने साल 2012 में महर्षि महेश योग वैदिक विश्वविद्यालय सागर से कम्प्यूटर साइंस में एमएससी की उपाधि ली। विश्वविद्यालय के कार्यकलापों को लेकर कुछ "शक सुबहा" हुआ तो उन्होंने यूजीसी यानी विश्वविधालय अनुदान आयोग से आरटीआई में जानकारी ली।आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए बताया कि यूजीसी की अनुमति बिना विश्वविद्यालय को अपने मुख्य परिसर के अलावा कहीं और सेंटर चलाने की अनुमति नहीं है। वह किसी को फ्रेंचायजी भी नहीं दे सकता। विश्वविद्यालय का मुख्यालय कटनी जिले के करौंदी में है। आयोग के जवाब ने शरद की चिंता बढ़ा दी। उन्होंने विश्वविद्यालय से इसका खुलासा करने को कहा। विश्वविद्यालय ने पहले तो स्वयं को आरटीआई के दायरे से बाहर बताकर जानकारी देने से इंकार कर दिया। फिर कुछ सोचा होगा तो शरद से शुल्क भी मांगा और अपीलीय सुनवाई कर फेसले को दोहरा दिया।
राज्यपाल से शिकायत कर मांगा न्याय
विश्वविद्यालय के इस दोहरे चरित्र को लेकर शरद ने राज्यपाल समेत अन्य जिम्मेदारों को शिकायत कर विश्वविद्यालय की वास्तविक स्थिति का खुलासा करने का आग्रह किया। शरद ने अपनी शिकायत में कहा—उक्त विश्वविद्यालय के डिप्लोमा,सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम यदि यूजीसी द्वारा मान्य नहीं हैं तब इस संस्थान में डीसीए,पीजीडीसीए योगा व अन्य डिप्लोमा प,सर्टिफिकेट कैसे छ़ात्रों को प्रदान किए जा रहे हैं,जबकि विश्वविद्यालय की ओर से विधानसभा में दी गई जानकारी में ही बताया गया कि उनके संस्थान में करीब दस हजार नियमित व 60 हजार 399 स्वाध्यायी विद्यार्थी अध्ययनरत हैं।
वैदिक संस्थान में अंग्रेजी की शिक्षा!
सूत्रों के अनुसार,विश्वविद्यालय शासन के जिन अधिनियमों का हवाला देकर पाठ्यक्रम संचालित कर रहा है। उसमें सिर्फ महर्षि वेद वैैदिक विश्वविद्यालय पीठम अंतर्गत वेद से जुड़े विषयों की शिक्षा दी जा सकती है। बीते साल राज्य विधानसभा में पेश एक जानकारी को ही आधार मानें तो विश्वविद्यालय में ज्योतिष,वेद शिक्षा लेने वालों का आंकड़ा नाममात्र का है। ज्यादातर संख्या अंग्रेजी,समाज शास्त्र व अन्य विषयों में डिग्री लेने वालों की है।
70 हजार स्टूडेंट्स पर सिर्फ 51 शिक्षक!
विश्वविद्यालय में अध्ययनरत 70हजार से अधिक विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए सिर्फ 51 शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें भी कई अतिथि शिक्षक हैं। सूत्रों के मुताबिक,संस्थान में नियमित शिक्षकों की संख्या गिनी—चुनी और शोध कार्य भी नगण्य हैं। कुछ साल पहले संस्थान ने शासन के प्रतिबंध के बावजूद एम फिल में एडमिशन दिए। बाद में यह मामला उपभोक्ता फोरम पहुंचा और प्रभावित छ़ात्रों को मुआवजा देना पड़ा।
नियमों के पालन में निजी,सुविधाएं लेने में आगे
विश्वविद्यालय स्वयं को निजी व सेल्फ फंडिंग वाला संस्थान बताता है। यही नहीं वह स्वयं को विश्वविद्यालय अधिनियम अंतर्गत भी नहीं मानता,लेकिन सरकार की योजनाओं का लाभ लेने में पीछे नहीं है। यहां के विद्यार्थियों को वर्ष 2017—18 से सरकारी छात्रवृत्ति दी जा रही है। एक शिकायत के बाद वर्ष 2022 में अनुसूचित जाति कल्याण विभाग इस पर रोक लगा दी थी,लेकिन अगले ही साल विभाग ने अपना फैसला बदलते हुए इसे फिर चालू कर दिया।
यूजीसी भी नहीं जान सका सच
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय सरकारी है या राज्य सरकार के अधीन निजी विश्वविद्यालय। यह सच आज तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी भी नहीं जान सका। विश्वविद्यालय के स्टेटस को जानने आयोग ने साल 2014 में राज्य सरकार को एक पत्र लिखा। इसका जवाब मिलने की जगह आयोग को ही न्यायालयीन कठघरे में खड़ा कर दिया गया। वह दिन और आज,आयोग विश्वविद्यालय का स्टेटस नहीं जान सका। बताया जाता है कि इस मामले में विश्वविद्यालय को न्यायालय से स्थगन मिला जो 11 साल बाद भी प्रभावी है।
विवि मुख्यालय के दोहरे पते को लेकर सवाल
साल 2022 में आयोग ने एक बार फिर विश्वविद्यालय को लेकर राज्य सरकार से सवाल—जवाब किए। 12अप्रैल 2022 को भेजे गए पत्र में आयोग ने पूछा—विश्वविद्यालय मुख्यालय को लेकर दो एड्रेस प्रदर्शित हैं। संस्थान की वेबसाइट प्रशासनिक मुख्यालय लामटी,विजयनगर,जबलपुर दिखा रही है,जबकि दस्तावेजों में विश्वविद्यालय का मुख्यालय, करौंदी जिला कटनी बताया गया है। सरकार में बैठे उपकृत अधिकारी इसका खुलासा कैसे करते! लिहाजा इसका भी जवाब आयोग को आज तक नहीं मिला।
सरकार ने कभी जारी नहीं की अधिसूचना
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को प्रदेश का पहली निजी यूनिवर्सिटी माना जाता है। 90 के दशक में निजी विवि के लिए नियमों में कोई प्रावधान भी नही था। तब तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री मुकेश नायक की पहल पर दिग्विजय सरकार वर्ष 1995 में पृथक अधिनियम लाई। विश्वविद्यालय बनते ही शिकवे—शिकायतें बढ़ी तो चार साल बाद ही सरकार ने अधिनियम में संशोधन किया। इस बार विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गतिविधियों का दायरा सीमित कर दिया गया,लेकिन दोनों ही बार सरकार इसे लेकर अधिसूचना जारी करना भूल गई। हालांकि बाद में भाजपा सरकार में पृथक अधिनियम के तहत बने अन्य निजी विश्वविद्यालयों के वक्त इस गल्ती को सुधार लिया गया। इन्हें मप्र निजी विश्वविद्यालय अधिनियम 2007 एवं मप्र विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के अधीन भी रखा गया लेकिन वैदिक विश्वविद्यालय इससे मुक्त रहा।
अधूरे जवाबों से विधायक भी नाखुश
विश्वविद्यालय को लेकर जब—तब राज्य विधानसभा में भी सवाल उठे,लेकिन मिलीभगत ऐसी कि जवाब विधायकों को संतुष्ट नहीं कर सके। बीते साल,वारासिवनी विधायक विवेक विक्की पटेल ने ही राज्यपाल मंगुभाई पटेल से एक लिखित शिकायत की। इसमें उन्होंने कहा कि उन्हें वांछित जानकारी की जगह मनगढ़ंत दस्तावेज दिए गए। फरवरी 2024 के प्रश्न क्रमांक 1780 के जवाब में पटल पर जो दस्तावेज रखे गए,उनमें दस्तावेज तैयार करने वाले का नाम,पदनाम, सील,मुहर,तारीख जैसे सामान्य नियमों का ही पालन नहीं किया गया। विधायक पटेल ने विश्वविद्यालय में नियम विरुद्ध संचालित पाठ्यक्रमों पर रोक लगाने व संपूर्ण मामले की सघन जांच करने की मांग भी की।
ढेरों शिकायतों के बाद भी अफसरों ने साधी चुप्पी
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को लेकर उच्च शिक्षा विभाग के अफसर चुप्पी साधे हुए हैं। बुधवार को ही कुछ लोगों ने विभाग प्रमुख अनुपम राजन से मिलकर अपनी पीड़ा बताई। राजन से इस बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रदीप वर्मा का रुख अपने संस्थान की कार्यशैली को लेकर बिल्कुल साफ है। वह कहते हैं—स्वाध्यायी छात्रों को पढ़ाने के लिए तो यूं भी नियमित शिक्षकों की आवश्यकता नहीं। जहां तक सरकार व यूजीसी के नियम कानूनों के बात तो यह विश्वविद्यालय पृथक अधिनियम के तहत स्थापित व ट्रस्ट द्वारा संचालित है। सुप्रीम कोर्ट भी इस बारे में स्थिति साफ कर चुका है,लिहाजा संशय की कोई गुंजाइश ही नहीं है।
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