*प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और उसका सही उपयोग हमारी पर्यावरणीय जिम्मेदारी : डा लता*
*भोपाल।* हैंडलूम के ऊपर जीरो कार्बन को ध्यान में रखकर पर्यावरणीय जिम्मेदारी को लेकर आसाम के गोहावटी में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। यह कार्यशाला नार्थ ईस्ट के अलग - अलग राज्यों में 7 दिन आयोजित की जायेगी। इस कार्यशाला में अलग - अलग क्षेत्रों में कार्यरत विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा कर हैंडलूम उद्योग में जीरो कार्बन उत्सर्जन पर बल दिया।
इस आयोजन में सीएसआर पर अपने विचार साझा करते हुए डा आरएच लता इंडिपेंडेंट डायरेक्टर आईएल भारी उद्योग मंत्रालय ने कहा कि सीएसआर के माध्यम से संबंधित सपोर्ट के साथ पर्यावरण के क्षेत्र में हम बेहतर कार्य कर सकते हैं। सीएसआर के क्षेत्र में किए गए अपने कार्यों का उल्लेख करते हुए डा लता ने कहा कि पारिस्थितिक स्तंभ पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के महत्व को रेखांकित करता है। इस स्तंभ का पालन करने वाली कंपनियाँ इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि
प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को कम करना और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना ही हमारी पर्यावरणीय जिम्मेदारी का हिस्सा है। हम सब को मिलकर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और अन्य पर्यावरणीय बोझ को कम करने की जरूरत है। हम सब मिलकर आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहतर वातावरण तभी दे पाएंगे जब हम खुद पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं का समर्थन करने वाले आपूर्तिकर्ताओं को प्राथमिकता देंगे। प्राकृतिक जैव विविधता को बनाए रखने के लिए हमारी प्रतिबद्धता ही आने वाला कल तय करेगी। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने की अवश्यकता पर जोर देते हुए डा लता ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की तात्कालिकता को देखते हुए, पर्यावरण संरक्षण सीएसआर एजेंडे का मुख्य मुद्दा बनता जा रहा है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा और टिकाऊ व्यवसाय प्रथाओं में निवेश शामिल है। हम सब इन्हीं प्रयासों से हैंडलूम को एक अनुकूल वातावरण दे पाएंगे।
*कार्यशाला में विभिन्न मुद्दों पर हुई परिचर्चा में आए कई सुझाव :*
इस कार्यशाला में शामिल विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों ने अपने अनुभवों से हैंडलूम उद्योग में कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर जोर देते हुए कई प्रकार के सुझाव दिए। गौरतलब है कि हैंडलूम उद्योग में भारत के सबसे टॉप राज्यों मेंअसम का नाम आता है । पूरे भारत में हैंडलूम के को भी उत्पाद बनते हैं उनमें से 50 फ़ीसदी नॉर्थ ईस्ट से ही आता है। इस कार्यक्रम को आयोजित करने का उद्देश्य भी यह था कि अगर हम इतने बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं तो प्रदूषण और पर्यावरण को लेकर सरकार की नीति के हिसाब से उद्योगों को क्या-क्या ध्यान रखना चाहिए, उस पर विचार विमर्श किया जाय। इसके अलावा हैंडलूम उद्योग के लिए मुख्यतः क्या पॉलिसी बन सकती है या क्या और किया जा सकता है, इस पर भी सुझाव प्राप्त हुए।
कार्यशाला में यह भी जानकारी सामने आई कि कुछ ऐसी चीजे भी हैं जिनके उत्पाद का आइडेंटिफिकेशन ठीक से नहीं है या कम आंकी गई है, उनको पॉलिसी में नहीं रखा गया। इस कार्यशाला में जो भी बातें उठकर आई है, उन बातों को सरकार को अवगत कराया गया है।
*ऐसे समझे हैंडलूम उद्योग की परेशानी :*
हैंडलूम उद्योग की परेशानी समझने के लिए उदाहरण के तौर पर मूंगा जो सिल्क होता है । मूंगा कि जो साड़ियां होती है, मूंगा के कपड़े हैं, कुछ और भी हैंडमेड प्रोडक्ट है पर जब उसे रजिस्टर्ड किया गया या वर्गीकृत किया गया तो उसमें सिर्फ साड़ी का ही नाम आता है। ऐसे बहुत से छोटी-छोटी चीजों को लेकर परिचर्चा की गई तथा पर्यावरण को और ज्यादा अच्छा करने के लिए इस पर विचार विमर्श हुआ। इसके अलावा असम के हैंडलूम को बचाए रखने के लिए बैंबू के संरक्षण पर जोर दिया गया। दरअसल आसाम का हैंडलूम उद्योग बैंबू पर आधारित है जबकि वहां बैंबू का घनत्व कम होता जा रहा है। इस पर ध्यान देने की जरूरत बताई गई। ऐसे बहुत से विषय थे जिन पर यह कार्यक्रम आधारित था, इससे ग्रामीण विकास, ग्रामीण पर्यटन,टूरिस्ट और पर्यटक बढ़ाने की संभावना जैसे मुद्दे शामिल किए गए थे।
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