भोपाल लोकसभा से कौन होगा उम्मीदवार?

 भोपाल लोकसभा सीट पर साल 1989 से बीजेपी का कब्जा चला आ रहा है. कांग्रेस ने यहां एक से बढ़कर एक दिग्गज मैदान में उतारे, लेकिन हर बार उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा.

अब तक के भोपाल से सांसद

1957           कांग्रेस    मैमूना सुल्तान    

1962           कांग्रेस    मैमूना सुल्तान

1967          जनसंघ    जे आर जोशी

1971           कांग्रेस    शंकर दयाल शर्मा

1977           बीएलडी    आरिफ बेग

1980           कांग्रेस    शंकर दयाल शर्मा

1984           कांग्रेस     के एन प्रधान

1989           बीजेपी    सुशील चंद्र

1991           बीजेपी    सुशील चंद्र

1996           बीजेपी    सुशील चंद्र

1998            बीजेपी    सुशील चंद्र

1999            बीजेपी    उमा भारती

2004           बीजेपी    कैलाश जोशी

2009           बीजेपी    कैलाश जोशी

2014            बीजेपी    आलोक संजर

2019            बीजेपी    प्रज्ञा सिंह ठाकुर


 भोपाल की डेमोग्राफी



भोपाल की कुल आबादी में 56 फीसदी हिंदू और 40 फीसदी मुस्लिम हैं.  यहां मतदाताओं की संख्या 20 लाख से ज्यादा है. इस संसदीय सीट पर में 8 विधानसभा सीटें हैं.इनमें सीहोर, बैरसिया, भोपाल उत्तर,नरेला,भोपाल दक्षिण-पश्चिम,भोपाल मध्य,गोविंदपुरा और हुजूर शामिल है. भोपाल में अब तक 16 बार आम चुनाव हुआ हैं जिसमें से 9 बार बीजेपी,5 बार कांग्रेस और एक-एक बार जनसंध और भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की है.


कांग्रेस को यहां 1957, 1962, 1971, 1980 और 1984 में जीत मिली है. मतलब उस जमाने में इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन भोपाल गैस कांड के बाद यहां की सियासी तस्वीर बदली और तब से लेकर अब तक यानी 1989 से लेकर 2019 तक यहां बीजेपी को जीत मिलती रही है.


यानी ये कहा जा सकता है कि अब ये सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ बन चुकी है. इसकी तस्दीक हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम भी करते हैं. यहां 7 विधानासभा सीटों में से फिलहाल 5 सीटें बीजेपी के पास और 2 सीटें कांग्रेस के पास है. 


वैसे भोपाल सीट पर संसदीय चुनाव का इतिहास देखें सुशील चंद्र ऐसे नेता रहे हैं जो 1989 से लेकर 1998 तक लगातार चार बार यहां के सांसद रहे हैं. दो-दो बार, मैमूना सुल्तान, शंकर दयाल शर्मा और कैलाश जोशी ने भी इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है. साल 2019 यानी पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मैदान में थें और  उनके सामने बीजेपी ने प्रज्ञा ठाकुर को उतारा था. मुकाबला कड़ा हुआ लेकिन अंत अपना पहला चुनाव लड़ रहीं प्रज्ञा ठाकुर ने उन्हें 3 लाख 64 हजार वोटों के अंतर से मात दे दी. ये चुनाव दिलचस्प था क्योंकि तब भोपाल सीट पूरे देश में 'हिंदुत्व की प्रयोगशाला' के तौर पर देखा जा रहा था. प्रज्ञा ठाकुर तो भगवा वस्त्रधारी तो हैं हीं, दिग्विजय सिंह के समर्थन में भी सैकड़ों साधु-संतों ने भोपाल में डेरा डाल दिया था. दिग्गी राजा के लिए तो कंप्यूटर बाबा ने बकायदा यज्ञ भी किया था पर नतीजों ने भोपाल की जनता का रुख साफ कर दिया था।

नवंबर माह में पीएम मोदी ने देश में चार जाति बताईं. पीएम मोदी ने कहा कि देश में सिर्फ चार जातियां गरीब, युवा, महिलाएं और किसान हैं. भाजपा जातिगत आधार पर टिकट वितरण करें संभावना कम है।

भोपाल को वोट बैंक की लिहाज से नापे तो अल्पसंख्यक बहुल लोकसभा सीट है, 6 बार कायस्थ उम्मीदवार लोकसभा सीट जीत चुका है और 5 बार ब्राह्मण उम्मीदवार। देश  भर में ओबीसी, आदिवासियों, अन्य पिछड़ी जातियों को आगे बढ़ाने के मुहिम के साथ भाजपा और कांग्रेस आगे बढ़ रही है।

उत्तर, नरेला, मध्य विधानसभा अल्पसंख्यक वोट से प्रभावित होते है, दक्षिण पश्चिम विधानसभा में कर्मचारी, कायस्थ और विंध्यप्रदेशवासियों का खास प्रभाव है। गोविंदपुरा विधानसभा मिक्स वोटर है यहां जाति और क्षेत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है केंद्र की नीतियां प्रभावी रहती है। हुजुर, बैरसिया क्षेत्र में ब्राह्मण वोटर प्रभाव रखते है। सीहोर क्षेत्र में कायस्थ प्रभावी रहते है।

फिर भी सामाजिक समीकरण की बात को समझे तो अल्पसंख्यक और कायस्थ वोट मिलकर मजबूत वोट बैंक तैयार करते है। वही प्रदेश में चल रही अलग विंध्यप्रदेश की मांग को जोड़े तो राजधानी में विंध्य मतदातों की संख्या भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। आसपास के जिलों विदिशा, राजगढ़, रायसेन, सीहोर  से आकर भोपाल में जोड़े ओबीसी बहुल मतदाता वोटों का भी प्रत्याशियों के चयन में महत्वपूर्ण स्थान है।

जन चर्चा में चलने वाली बातों को माने तो भोपाल भाजपा का गढ़ है। भोपाल से किसी भी बाहरी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाकर जीताया जा सकता है। भोपाल के स्थानीय नेता अपने बीच के किसी नेता को लोकसभा उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित नहीं करते है।

No comments

Powered by Blogger.