Ram Mandir: इन आभूषणों से सुसज्जित हुए हैं रामलला, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने दी जानकारी


Ram Mandir: 22 जनवरी को भगवान रामलला की मूर्ति की राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो गई। वह गर्भगृह में विराजित हो गए हैं। प्रभु को जिसने भी पहली बार देखा वह उनकी मुस्कान को देख मंत्रमुग्ध हो गया। इस विशेष दिन प्रभु को नहलाकर विशेष श्रृंगार से सजाया गया था। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उनके आभूषणों के बारे में जानकारी दी है।




आइए जानते हैं रामलला के आभूषणों के बारे में...


शीष पर मुकुट या किरीट


यह उत्तर भारतीय परम्परा में स्वर्ण निर्मित है, जिसमें माणिक्य, पन्ना और हीरों से अलंकरण किया गया है। मुकुट के टीक मध्य में भगवान सूर्य अंकित हैं। मुकुट के दायीं ओर मोतियों की लड़ियां पिरोई गयी हैं।


कुंडल


मुकुट या किरीट के अनुरूप ही और उसी डिजाईन के क्रम में भगवान के कर्ण-आभूषण बनाए गए हैं, जिनमें मयूर आकृतियां बनी हैं और यह भी सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से सुशोभित है।


कण्ठा


गले में अर्द्धचंद्राकार रत्नों से जड़ित कण्ठा सुशोभित है, जिसमें मंगल का विधान रचते पुष्प अर्पित हैं और मध्य सूर्य देव बने हैं। सोने से बना हुआ यह कण्ठा हीरे, माणिक्य और पन्नों से जड़ा है। कण्ठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गयी हैं।


भगवान के ह्रदय


ह्रदय में कौस्तुभमणि धारण कराया गया है, जिसे एक बड़े माणिक्य और हीरों के अलंकरण से सजाया गयाहै। यह शास्त्र-विदान है कि भगवान विष्णउ तथा उनके अवतार ह्रदय में कौस्तुभमणि धारण करते हैं, इसलिए इसे धारण कराया गया है।


पदिक


कण्ठ से नीचे और नाभिकमल से ऊपर पहनाया गया हार होता है, जिसका देवता अलंकरण में विशेष महत्व है। यह पदिक पांच लड़ियों वाला हीरे और पन्ने का ऐसा पंचलड़ा है, जिसके नीचे एक बड़ा सा अलंकृत पेण्डेंट लगाया गया है।


वैजयंती या विजयमाल


यह भगवान को पहनाया जाने वाला तीसरा और सबसे लम्बा और स्वर्ण से निर्मित हार है, जिसमें कहीं-कहीं माणिक्य लगाए गए हैं, इसे विजय के प्रतीक के रूप पहनाया जाता है, जिसमें वैष्णव परंपरा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल-कलश दर्शाया गया है। इसमें पांच प्रकार के देवता को प्रिय पुष्पों का भी अलंकरण किया गया है, जो कमल, चम्पा, पारिजात, कुंद और तुलसी हैं।


कमर में कांची या करधनी


भगवान के कमर में करधनी धारण करायी गई है, जिसे रत्नजड़ित बनाया गया है। स्वर्ण पर निर्मित इसमें प्राकृतिक सुषमा का अंकन है, और हीरे, माणिक्य, मोतियों और पन्ने से यह अलंकृत है। पवित्रता का बोध कराने वाली छोटी-छोटी पांच घंटियों को भी इसमें लगाई गई है। इन घंटियों से मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियां भी लटक रही हैं।


भुजबंध या अंगद


भगवान की दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित भुजबंध पहनाए गए हैं।


कंगन


दोनों ही हाथों में रत्नजड़ित सुंदर कंगन पहनाए गए हैं।


मुद्रिका


बाएं और दाएं दोनों हाथों की मुद्रिकाओं में रत्नजड़ित मुद्रिकाएं सुशोभित हैं, जिनमें से मोतियां लटक रही हैं।


पैरों में चड़ा और पैजनियां


पैरों में चड़ा और पैजनियां पहनाए गए हैं। भगवान को स्वर्ण की पैजनियां पहनाई गई हैं।


भगवान के बाएं हाथ


भगवान के बाएं हाथ में स्वर्ण का धनुष है, जिनमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकने लगी हैं। इसी तरह दाहिने हाथ में स्वर्ण का बाण धारण कराया गया है।


भगवान के गले में


भगवान के गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला धारण कराई गई है, जिसका निर्माण हस्तशिल्प के लिए समर्पित शिल्पमंजरी संस्था ने किया है।


भगवान के मस्तक पर


भगवान के मस्तक पर उनके पारम्परिक मंगल-तिलक को हीरे और माणिक्य से रचा गया है।


भगवान के चरण


भगवान के चरणों के नीचे कमल सुसज्जित है। उसके नीचे एक स्वर्णमाला सजाई गई है।


खेल-खिलौने


पांच वर्ष के बालक-रूप में श्रीरामलला विराजे हैं, इसलिए पारंपरिक ढंग से उनके सम्मुख खेलने के लिए चांदी से निर्मित खिलौने रखे गए हैं। ये हैं झुनझुना, हाथी, घोड़ा, खिलौना गाड़ी और लट्टू।


भगवान का प्रभा-मण्डल


भगवान के प्रभा मण्डल के ऊपर सोने का छत्र लगा हुआ है।

No comments

Powered by Blogger.