MP Election Results: हिन्दुत्व कार्ड से लेकर सोशल इंजीनियरिंग तक, मध्यप्रदेश में बीजेपी के जीत की 5 बड़ी वजहें



अगर एक लाइन में ही मध्यप्रदेश में बीजेपी की जीत की वजह बतानी हो तो शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना ने पूरे मध्यप्रदेश में कांग्रेस को दरकिनार कर बीजेपी के हाथ में सत्ता दे दी है.


तमाम चुनावी विश्लेषणों को धता बताते हुए भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव जीत लिया है. अब सवाल ये है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही रहेंगे या फिर उनकी जगह कोई और लेगा. लेकिन इस सवाल से पहले उन वजहों को तलाशने की कोशिश करते हैं, जिन्होंने मध्यप्रदेश में हार रही बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई है. 


अगर एक लाइन में ही मध्यप्रदेश में बीजेपी की जीत की वजह बतानी हो तो शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना ने पूरे मध्यप्रदेश में कांग्रेस को दरकिनार कर बीजेपी के हाथ में सत्ता दे दी है. यही वो योजना है, जिसके जरिए एमपी के माम शिवराज सिंह चौहान ने 1250 रुपये सीधे महिलाओं के खाते में ट्रांसफर कर एक नया लाभार्थी वोट बैंक बनाया. इन लाभार्थियों की संख्या करीब 1 करोड़ 30 लाख के पार थी, जिनके वोट शिवराज बीजेपी के पाले तक खींचकर लाए.


एमपी के मन में है मोदी


मध्यप्रदेश चुनाव में बीजेपी ने बड़े जोर-शोर से इस नारे को उछाला था. और ये नारा काम कर गया. शुरुआती चुनावी प्रचार में बीजेपी पिछड़ती हुई दिख रही थी, लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां शुरू हुईं, गेम पलट गया. और जो साइलेंट वोटर था, जो शिवराज सिंह चौहान या फिर स्थानीय विधायक-मंत्री से नाराज था, उसने भी पीएम मोदी के चेहरे पर भरोसा जताया और नतीजा सबके सामने है.


बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड


मध्यप्रदेश में बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड चलने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बात चाहे उज्जैन महाकाल लोक निर्माण की हो या फिर अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की, बीजेपी ने इसे अपने व्यक्तिगत काम के तौर पर प्रचारित किया. 230 विधानसभा सीटों वाले एमपी में एक भी मुस्लिम को टिकट न देकर बीजेपी ने अपने इरादे जाहिर कर दिए. और नतीजा ये हुआ कि बीजेपी एमपी में अपने इतिहास की सबसे बड़ी जीत की ओर बढ़ गई.


बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग


बीजेपी भले ही जाति जनगणना का विरोध करे, लेकिन चुनाव में उसे जातियों का इस्तेमाल करना बखूबी आता है. सामाजिक विज्ञान या राजनीतिक विज्ञान की किताबों में इसे सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता है. तो बीजेपी ने एमपी में भी सोशल इंजीनियरिंग की. सांसदों को भी चुनावी मैदान में उतारते वक्त उनकी जाति और उनके वोट का ध्यान रखा. 33 फीसदी महिला आरक्षण का दांव संसद से चला ही जा चुका था. लिहाजा जब नतीजे आए, तो कांग्रेस के पक्ष में बताए जा रहे तमाम समीकरण ध्वस्त हो गए.


बागियों पर भारी, शाह की तैयारी


टिकट बंटवारे के बाद जो लोग कांग्रेस की जीत का ऐलान कर रहे थे, उनकी निगाहें बीजेपी के बागियों पर टिकी थीं. टिकट कटने से नाराज बीजेपी नेताओं ने खुले तौर पर बगावत की थी. लेकिन अंतिम वक्त में गृहमंत्री अमित शाह ने कमान संभाली. बागियों को मनाया. 7 सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़वाया, जिनमें तीन मंत्री थे. कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता को इंदौर संभालने की जिम्मेदारी दे दी. भूपेंद्र यादव पल-पल की रिपोर्ट लेते रहे. वॉर रूम में अश्विनी वैष्णव की हमेशा मौजूदगी रही. हर एक पेच जो थोड़ा ढीला पड़ रहा था, अमित शाह ने खुद उसे कसा. और अब उसका आखिरी रिजल्ट सामने आ गया है.


बाकी असली खेल तो अब शुरू हुआ है. क्योंकि भले ही मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान इस जीत के बाद लोकप्रियता के शीर्ष पर मौजूद हों, लेकिन अब भी मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम का ऐलान नहीं हुआ है. तो इसके लिए करना होगा इंतजार. 


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