एक राष्ट्र-एक ध्वज के मान -सम्मान के बाद अब श्रीराम मंदिर निर्माण का महापर्व 5 अगस्तः भारतीय इतिहास का स्वर्णिम दिवस


डॉ राजेश शर्मा 

यूं तो साल की अन्य तारीखों की तरह 5 अगस्त भी एक तारीख ही है, लेकिन केंद्र की सत्ता में लगातार दूसरी बार आई नरेंद्र मोदी सरकार के साहसी और ऐतिहासिक फैसलों के कारण यह तारीख भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम तारीख बन गई है। वर्ष 2019 में इसी दिन मोदी सरकार ने कश्मीर में सात दशकों से लागू धारा 370 को हटाने जैसा साहसी कदम उठाया और देश के लिए नासूर बन चुके काश्मीर विवाद को एक ही झटके में समाप्त कर दिया। वास्तव में केंद्र के इस निर्णय के बाद ही कश्मीर देश का अभिन्न अंग हुआ और एक राष्ट्र,‘एक विधान, एक निशान‘ की परिकल्पना भी साकार हो सकी। आज कश्मीर और वहां की जनता विकास की दिशा में तेजी से बढ़ रही है। उसी प्रकार 5 अगस्त 2020 के दिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भव्य राममंदिर की आधारशिला रख पांच शताब्दी से असंख्य लोगों का सपना साकार किया । करीब 500 सालों से चले आ रहे राम जन्मभूमि विवाद का निराकरण हालांकि देश की सर्वोच्च अदालत के नवंबर 2019 में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय के बाद हुआ, लेकिन यह श्रेय भी भाजपा और श्री नरेंद्र मोदी सरकार को दो कारणों से दिया जा सकता है। पहला, राममंदिर जन्मभूमि पर श्री राम के भव्य मंदिर निर्माण का मुद्दा भाजपा के एजेंडे में पहले से ही है। दूसरा, इस विवादास्पद मामले की शीघ्र सुनवाई का रास्ता और मामले के निराकरण के लिए सरकार ने सक्रियता से काम किया और अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। मोदीजी और भाजपा की केंद्रीय सरकार की प्रशंसा इसलिए भी की जानी चाहिए कि उन्होंने देश के विवादास्पद मुद्दों से पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की भांति शुतुरमुर्गी रवैया न अपनाकर उनके सर्वमान्य हल को तलाशने का न केवल कार्य किया अपितु देश के समरस वातावरण को भी पूरी तरह कायम रखा।  

वास्तव में श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम होने के साथ ही इस देश के प्राण हैं। वे इस देश के जन-जन में उनकी सांसों की तरह ही रचे-बसे हैं। हालांकि सनातन धर्म में असंख्य आराध्य देवी-देवता हैं, लेकिन उन सबमें भी श्रीराम का स्थान सबसे आदर्श माना जाता है। श्रीराम ने अपने जीवनकाल में एक मानव होने के नाते जो आदर्श प्रतिमान स्थापित किए, वे हर युग, हर धर्म, हर परिस्थिति में सर्वदा ही आदर्श माने जाते रहें हैं और युगों-युगों तक आदर्श ही माने जाते रहेंगे। यदि श्रीराम को एक ईश्वर या भगवान की श्रेणी से हटकर भी देखा जाए तो विश्व के किसी भी धर्म का अनुयायी या पूजा पद्धति का मानने वाला चिंतक जो उच्च और श्रेष्ठ आदर्श जीवन का कल्पना करता है, वह निर्विवाद रूप से श्रीराम के जीवन को प्रेरणा अवश्य लेना चाहेगा। इसलिए भी श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण केवल ईंट, मिट्टी, गारे का भवन मात्र नहीं होगा, वह न केवल भारत के करोड़ों लोगों के लिए अपितु विश्व के असंख्य लोगों के लिए आस्था और प्रेरणा का वह प्रेरक केंद्र बिंदु होगा, जहां से सकारात्मक उर्जा प्राप्त करके हमारी आने वाली पीढ़ियां स्वयं को मानवीयता के उच्च शिखर की ओर ले जा सकेंगी।

अयोध्या और राम मंदिर का इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार कौशल प्रदेश की प्राचीन राजधानी अवध को कालांतर में अयोध्या और बौद्धकाल में साकेत कहा जाने लगा। अयोध्या के नाम का अर्थ ही है जिससे युद्ध न किया जा सके या जिसे युद्ध में जीता न जा सके। अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था, तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का राज महाभारत काल तक रहा। यहीं पर प्रभु श्रीराम का दशरथ के महल में जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इन्द्रलोक से की है। धन-धान्य व रत्नों से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुंबी इमारतों के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है। भगवान श्रीराम के बाद उनके पुत्र कुश ने राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व आखिरी राजा, महाराजा बृहद्बल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा।
इसके बाद यह उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंच गए। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी के किनारे एक आम के वृक्ष के नीचे वे अपनी सेना सहित आराम करने लगे। उस समय यहां घना जंगल हो चला था। कोई बसावट भी यहां नहीं थी। महाराज विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे। तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश से सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी।

राम जन्मभूमि विवाद
राम जन्मभूमि स्थल को लेकर विवाद की शुरूआत वर्ष 1528 में हुई, जब मुगल आक्रमणकारी बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर को तोड़कर वहां एक मस्जिद का निर्माण कराया। उसके बाद इस स्थल पर आधिपत्य को लेकर हिंदु धर्मावलंबियों और मुस्लिम धर्म के अनुयायियों के बीच विवाद का प्रारंभ हुआ। वर्ष 1853 में दोनों के बीच पहली बार विवाद हुआ। इस समय देश में अंग्रेजों का शासन था। 1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। इसके बाद 1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रख दी गई। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया। सन् 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की। जबकि विश्व हिन्दू परिषद ने 1989 में इस स्थल से सटी खाली जमीन पर मंदिर निर्माण के लिए विशाल आंदोलन शुरू किया। इसी दौरान मंदिर निर्माण आंदोलन के तहत 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवा का आयोजन किया गया। तभी कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। उसके बाद इस मामले में जांच के लिए केंद्र सरकार ने एक आयोग का गठन किया। आयोग ने रिपोर्ट देने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई। तत्कालीन केंद्र सरकार ने जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया। सन 1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी, लेकिन मांग ठुकरा दी गई । इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने भी खारिज कर दिया। मामले की सुनवाई के दौरान सन 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।

सन 2010 में आया फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सन 2010 में इस मामले में निर्णय सुनाया, जिसमें विवादित भूमि को राम जन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे राम जन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदुओं को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्जा रहा है, इसलिए यह हिस्सा निर्मोही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं, इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दे दिया जाए। हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में त्वरित सुनवाई करते हुए 8 नवंबर 1919 को अंतिम फैसला सुनाया और भूमि को रामलला को सौंप दिया। इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद  5 अगस्त को भव्य मंदिर का शिलान्यास प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने  कर असंख्य लोगों की आस्था और विश्वास के 5 शताब्दी पुराने सपने को साकार करने की नींव रखी। निश्चित ही यह तारीख मान-सम्मान और स्वाभिमान के विजय दिवस के रूप में इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में इंगित हो गई।

जय श्रीराम

(उपरोक्त विचार लेखक के निजी हैं।लेखक म.प्र के ख्यातिनाम चिकित्सक-चिंतक एवं समाजसेवी हैं।)

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