कमलनाथ छोड़ेंगे प्रदेश की राजनीति ,केंद्र की राजनीति में बेटे को करेंगें स्थापित
नेता प्रतिपक्ष बनेगें डॉ गोविंद सिंह, जीतू सम्हालेंगे संगठन
(राजेन्द्र ठाकुर की कलम से)
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जल्द ही म.प्र की कांग्रेस राजनीति को अलविदा कहकर दिल्ली में सक्रिय होकर बेटे नकुल को स्थापित करने का प्रयास करेंगें। दरअसल कमलनाथ शुरुआत से ही दिल्ली की राजनीति को पसंद करते थे कारपोरेट स्टाइल में टेबल मीटिंग की पॉलिटिक्स के अलावा वे सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा के लोगों से ही मिलना पसंद करते है इसकी बानगी उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में भी दिखी जब वे मंत्रालय के अलावा छिंदवाड़ा के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र में जनता के बीच जाना ज्यादा पसंद नहीं करते थे। कमलनाथ की राजनीति करने की अपनी अलग कारपोरेट स्टाइल है और गत विधानसभा चुनाव के पहले तक वे उसी अंदाज में अपना काम बखूबी कर रहे थे पर दिग्विजय सिंह को जब लगा कि सिंधिया की लोकप्रियता और सक्रियता प्रदेश में काफी बढ़ रही है तो उन्होंने सिंधिया के सामने कमलनाथ को खड़ा कर दिया शुरुआत में कमलनाथ भी न- नकुर करते रहे पर जब दिग्विजय सिंह ने सीएम की कुर्सी का दिव्य स्वप्न दिखाया तो कमलनाथ की महत्वाकांक्षा जाग गई और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ कमलनाथ भी लामबंद हो गए। कांग्रेस की सरकार बन गई दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने सिंधिया को दरकिनार कर 15 महीने अपनी खूब चलाई और फिर जब बात मान ,सम्मान और स्वाभिमान पर आ गई तो सिंधिया ने अपने समर्थकों की दम पर म.प्र में कांग्रेस सरकार की विदाई कर दी। सरकार जाने के बाद अब नैतिक रूप से कमलनाथ को अपने उन विधायकों के साथ सदन में संघर्ष करना चाहिए जिन्होंने विपरीत परिस्थिति में न सिर्फ उनके नेतृत्व में आस्था दिखाई बल्कि नेतृत्व परिवर्तन जैसे विकल्प को दरकिनार कर 15 साल बाद बनी सरकार की बलि भी चढ़ा दी। लेकिन सूत्रों की माने तो अब कमलनाथ भोपाल में राजनीति करने के मूड में नहीं है वो प्रदेश की राजनीति दिग्विजय सिंह के जिम्मे छोड़कर दिल्ली कूच करेंगें और इसलिए वे नेता प्रतिपक्ष का पद भी दिग्विजय सिंह के खास डॉ.गोविंद सिंह को देने पर राजी है,दिग्विजय सिंह ने उन्हें तर्क दिया है कि डॉ गोविंद सिंह चंबल से है तो वे सिंधिया का प्रभाव और प्रभुत्व रोकने में पार्टी की मदद करेंगे पर कमलनाथ ये भूल रहे है कि स्वयं दिग्विजय सिंह जब चंबल तो छोड़िए अपने गृह जिले गुना में सिंधिया का प्रभाव नहीं रोक सके तो उनकी दम पर गोविंद सिंह कितने कारगर होंगें ये तो भविष्य ही बताएगा। दिग्विजय की सलाह पर ही कमलनाथ केंद्रीय राजनीति में वापसी कर रहे है।यहां नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और संगठन में जीतू पटवारी कामकाज सम्हालेंगे। दिग्विजय सिंह की अगली राजनीति कमलनाथ समर्थकों को भी या तो अपने खेमे में लेने की है या फिर नेपथ्य में करने की।नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष पद के बड़े दावेदार सज्जन सिंह वर्मा को मालवा की राजनीति में भी प्रभावहीन करने जीतू को संगठन में तरजीह देने के साथ साथ अजा वर्ग से ही प्रेमचंद गुड्डू की कांग्रेस में घर वापसी कर सज्जन को नेपथ्य की और धकेलने की भी साजिश हो सकती है। अपनी राजनीति से सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने पर मजबूर करने वाले दिग्गी अब कमलनाथ खेमे में दो फाड़ की तैयारी कर रहे है कुल मिलाकर दिग्विजय अगले विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस की कठपुतली की सारी डोरियां अपने हाथों में ले लेंगें जिससे वे अपने सर्वविदित लक्ष्य पर काम कर सकें। फिलहाल अंदरखाने की खबर है कि कमलनाथ विधायक तो बने रहेंगे पर गाहे - बगाहे ही अपनी उपस्थिति सदन में आवश्यक होने पर देंगें। प्रदेश संगठन भी जीतू पटवारी के सुपुर्द हो जाएगा और कमलनाथ दिग्विजय की सलाह के अनुसार अपनी कारपोरेट पॉलिटिक्स के जरिये कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के रिक्त स्थान पर अपने बेटे को दिल्ली में सेट करने का प्रयास करेंगें हालांकि ये बेहद कठिन होगा क्योकि सिंधिया की पकड़ जनमानस में है और उसके लिए कारपोरेट ऑफिस से बाहर बिना एसी के जनता के बीच जाना होगा जो नकुल नाथ के लिए असम्भव जैसा होगा। डॉ.गोविंद सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनते ही दिग्गी के मिशन कमलनाथ का श्रीगणेश हो जाएगा जिसमें भविष्य में मध्य प्रदेश में कांग्रेस मतलब "दिग्विजय कांग्रेस" होगा।
-:लेखक नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार हैं-:
(राजेन्द्र ठाकुर की कलम से)
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जल्द ही म.प्र की कांग्रेस राजनीति को अलविदा कहकर दिल्ली में सक्रिय होकर बेटे नकुल को स्थापित करने का प्रयास करेंगें। दरअसल कमलनाथ शुरुआत से ही दिल्ली की राजनीति को पसंद करते थे कारपोरेट स्टाइल में टेबल मीटिंग की पॉलिटिक्स के अलावा वे सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा के लोगों से ही मिलना पसंद करते है इसकी बानगी उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में भी दिखी जब वे मंत्रालय के अलावा छिंदवाड़ा के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र में जनता के बीच जाना ज्यादा पसंद नहीं करते थे। कमलनाथ की राजनीति करने की अपनी अलग कारपोरेट स्टाइल है और गत विधानसभा चुनाव के पहले तक वे उसी अंदाज में अपना काम बखूबी कर रहे थे पर दिग्विजय सिंह को जब लगा कि सिंधिया की लोकप्रियता और सक्रियता प्रदेश में काफी बढ़ रही है तो उन्होंने सिंधिया के सामने कमलनाथ को खड़ा कर दिया शुरुआत में कमलनाथ भी न- नकुर करते रहे पर जब दिग्विजय सिंह ने सीएम की कुर्सी का दिव्य स्वप्न दिखाया तो कमलनाथ की महत्वाकांक्षा जाग गई और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ कमलनाथ भी लामबंद हो गए। कांग्रेस की सरकार बन गई दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने सिंधिया को दरकिनार कर 15 महीने अपनी खूब चलाई और फिर जब बात मान ,सम्मान और स्वाभिमान पर आ गई तो सिंधिया ने अपने समर्थकों की दम पर म.प्र में कांग्रेस सरकार की विदाई कर दी। सरकार जाने के बाद अब नैतिक रूप से कमलनाथ को अपने उन विधायकों के साथ सदन में संघर्ष करना चाहिए जिन्होंने विपरीत परिस्थिति में न सिर्फ उनके नेतृत्व में आस्था दिखाई बल्कि नेतृत्व परिवर्तन जैसे विकल्प को दरकिनार कर 15 साल बाद बनी सरकार की बलि भी चढ़ा दी। लेकिन सूत्रों की माने तो अब कमलनाथ भोपाल में राजनीति करने के मूड में नहीं है वो प्रदेश की राजनीति दिग्विजय सिंह के जिम्मे छोड़कर दिल्ली कूच करेंगें और इसलिए वे नेता प्रतिपक्ष का पद भी दिग्विजय सिंह के खास डॉ.गोविंद सिंह को देने पर राजी है,दिग्विजय सिंह ने उन्हें तर्क दिया है कि डॉ गोविंद सिंह चंबल से है तो वे सिंधिया का प्रभाव और प्रभुत्व रोकने में पार्टी की मदद करेंगे पर कमलनाथ ये भूल रहे है कि स्वयं दिग्विजय सिंह जब चंबल तो छोड़िए अपने गृह जिले गुना में सिंधिया का प्रभाव नहीं रोक सके तो उनकी दम पर गोविंद सिंह कितने कारगर होंगें ये तो भविष्य ही बताएगा। दिग्विजय की सलाह पर ही कमलनाथ केंद्रीय राजनीति में वापसी कर रहे है।यहां नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और संगठन में जीतू पटवारी कामकाज सम्हालेंगे। दिग्विजय सिंह की अगली राजनीति कमलनाथ समर्थकों को भी या तो अपने खेमे में लेने की है या फिर नेपथ्य में करने की।नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष पद के बड़े दावेदार सज्जन सिंह वर्मा को मालवा की राजनीति में भी प्रभावहीन करने जीतू को संगठन में तरजीह देने के साथ साथ अजा वर्ग से ही प्रेमचंद गुड्डू की कांग्रेस में घर वापसी कर सज्जन को नेपथ्य की और धकेलने की भी साजिश हो सकती है। अपनी राजनीति से सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने पर मजबूर करने वाले दिग्गी अब कमलनाथ खेमे में दो फाड़ की तैयारी कर रहे है कुल मिलाकर दिग्विजय अगले विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस की कठपुतली की सारी डोरियां अपने हाथों में ले लेंगें जिससे वे अपने सर्वविदित लक्ष्य पर काम कर सकें। फिलहाल अंदरखाने की खबर है कि कमलनाथ विधायक तो बने रहेंगे पर गाहे - बगाहे ही अपनी उपस्थिति सदन में आवश्यक होने पर देंगें। प्रदेश संगठन भी जीतू पटवारी के सुपुर्द हो जाएगा और कमलनाथ दिग्विजय की सलाह के अनुसार अपनी कारपोरेट पॉलिटिक्स के जरिये कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के रिक्त स्थान पर अपने बेटे को दिल्ली में सेट करने का प्रयास करेंगें हालांकि ये बेहद कठिन होगा क्योकि सिंधिया की पकड़ जनमानस में है और उसके लिए कारपोरेट ऑफिस से बाहर बिना एसी के जनता के बीच जाना होगा जो नकुल नाथ के लिए असम्भव जैसा होगा। डॉ.गोविंद सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनते ही दिग्गी के मिशन कमलनाथ का श्रीगणेश हो जाएगा जिसमें भविष्य में मध्य प्रदेश में कांग्रेस मतलब "दिग्विजय कांग्रेस" होगा।
-:लेखक नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार हैं-:
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