शिवराज की पंच प्यारे केबिनेट में दिखा जाति- क्षेत्र का बेहतर संतुलन
फार्मूला बनाकर सबको साधा
शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पहली केबिनेट में सिर्फ प्रदेश के पांच अंचल से पांच मंत्री बनाये जिसमें क्षेत्रीय के साथ साथ जातिगत समीकरण का भी ध्यान रखा और एक फार्मूला लागू कर जहां सिंधिया समर्थक नवागत भाजपाइयों को साधा तो वही बीजेपी के कई दिग्गज भी फार्मूला के कारण केबिनेट में नही आ पाए,भाजपा की अपनी एक विशेषता ये भी है कि इसमें गुटबाजी और कोटा से ज्यादा संगठन की मंशा को तबज्जो मिलती है और यही इस केबिनेट में भी देखने को मिला। शिवराज के पंच प्यारे में चंबल से नरोत्तम मिश्रा (सामान्य -ब्राह्मण), मालवा से तुलसी सिलावट(अजा), बुंदेलखंड से गोविंद राजपूत(सामान्य-राजपूत),मध्य भारत नर्मदांचल से कमल पटेल (पिछड़ा)और विंध्य महाकौशल से मीना सिंह(अजजा) को चुना गया। पंच प्यारे केबिनेट में 15 माह बाद शिवराज सिंह सरकार की वापसी कराने वाले सिंधिया समर्थक में से 2 सदस्य बनाकर ये दर्शा दिया कि सिंधिया का महत्व सरकार में बरकरार रखा जाएगा। सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट को मालवा से प्रतिनिधित्व दिया जहां कई वरिष्ठ भाजपाई भी कतार में थे तो बुंदेलखंड से गोविंद राजपूत को प्रतिनिधित्व देने शिवराज सिंह ने अपनी पिछली सरकार के दो वरिष्ठ सदस्य भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को वेटिंग बेंच पर रखने में भी कोताही नही बरती। संतुलन फार्मूला के कारण ही नरोत्तम मिश्रा के चंबल से होने के कारण सिंधिया के करीबी प्रद्युम्न सिंह और इमरती देवी जहां क्षेत्रीय संतुलन के कारण वेटिंग में अटक गये तो वहीं महेंद्र सिसोदिया और डॉ प्रभुराम चौधरी को जातिगत समीकरण के कारण केबिनेट में आने थोड़ा सा इंतजार करना होगा। शिवराज सिंह जानते थे कि यदि एक जाति से दो मंत्री बने तो फिर सिंधिया समर्थकों को भी एडजेस्ट करना होगा और यदि सिंधिया समर्थकों को एडजेस्ट करते है तो पुराने भाजपाइयों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। समीकरण के संतुलन के लिए ही निमाड़ को मालवा में और महाकौशल को विंध्य में समाहित किया गया। बिसाहुलाल लाल सिंह को अजजा का प्रतिनिधित्व करने का अवसर पहली केबिनेट में इस लिए नही मिला क्योकि क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन के बीच महिला नेतृत्व को ध्यान में रखकर इस वर्ग से विंध्य की महिला नेत्री मीना सिंह को जगह दी गई,और इसलिए भाजपा के एक और धाकड़ आदिवासी नेता विजय शाह भी केबिनेट में जगह नही बना पाए। इसी तरह राजवर्धन सिंह दत्तिगांव को जातिगत फार्मूले और एंदल सिंह कंसाना तथा डंग को क्षेत्रवाद के चलते सरकार का हिस्सा बनने इंतेज़ार करना पड़ सकता है।हालांकि ये तय है कि इंतेज़ार लम्बा नही होगा। कोरोना के चलते लॉकडाउन हटने के साथ विस्तार में इन्हें जगह मिलने की संभावना है।
शिवराज सिंह चौहान जो अब तक वनमैन आर्मी की तरह कोरोना से प्रशासनिक लड़ाई लड़ रहे थे वो अब अपने पंच प्यारे के साथ कोरोना से जंग लड़ेंगे।
*राजेन्द्र ठाकुर*
(लेखक नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पहली केबिनेट में सिर्फ प्रदेश के पांच अंचल से पांच मंत्री बनाये जिसमें क्षेत्रीय के साथ साथ जातिगत समीकरण का भी ध्यान रखा और एक फार्मूला लागू कर जहां सिंधिया समर्थक नवागत भाजपाइयों को साधा तो वही बीजेपी के कई दिग्गज भी फार्मूला के कारण केबिनेट में नही आ पाए,भाजपा की अपनी एक विशेषता ये भी है कि इसमें गुटबाजी और कोटा से ज्यादा संगठन की मंशा को तबज्जो मिलती है और यही इस केबिनेट में भी देखने को मिला। शिवराज के पंच प्यारे में चंबल से नरोत्तम मिश्रा (सामान्य -ब्राह्मण), मालवा से तुलसी सिलावट(अजा), बुंदेलखंड से गोविंद राजपूत(सामान्य-राजपूत),मध्य भारत नर्मदांचल से कमल पटेल (पिछड़ा)और विंध्य महाकौशल से मीना सिंह(अजजा) को चुना गया। पंच प्यारे केबिनेट में 15 माह बाद शिवराज सिंह सरकार की वापसी कराने वाले सिंधिया समर्थक में से 2 सदस्य बनाकर ये दर्शा दिया कि सिंधिया का महत्व सरकार में बरकरार रखा जाएगा। सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट को मालवा से प्रतिनिधित्व दिया जहां कई वरिष्ठ भाजपाई भी कतार में थे तो बुंदेलखंड से गोविंद राजपूत को प्रतिनिधित्व देने शिवराज सिंह ने अपनी पिछली सरकार के दो वरिष्ठ सदस्य भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को वेटिंग बेंच पर रखने में भी कोताही नही बरती। संतुलन फार्मूला के कारण ही नरोत्तम मिश्रा के चंबल से होने के कारण सिंधिया के करीबी प्रद्युम्न सिंह और इमरती देवी जहां क्षेत्रीय संतुलन के कारण वेटिंग में अटक गये तो वहीं महेंद्र सिसोदिया और डॉ प्रभुराम चौधरी को जातिगत समीकरण के कारण केबिनेट में आने थोड़ा सा इंतजार करना होगा। शिवराज सिंह जानते थे कि यदि एक जाति से दो मंत्री बने तो फिर सिंधिया समर्थकों को भी एडजेस्ट करना होगा और यदि सिंधिया समर्थकों को एडजेस्ट करते है तो पुराने भाजपाइयों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। समीकरण के संतुलन के लिए ही निमाड़ को मालवा में और महाकौशल को विंध्य में समाहित किया गया। बिसाहुलाल लाल सिंह को अजजा का प्रतिनिधित्व करने का अवसर पहली केबिनेट में इस लिए नही मिला क्योकि क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन के बीच महिला नेतृत्व को ध्यान में रखकर इस वर्ग से विंध्य की महिला नेत्री मीना सिंह को जगह दी गई,और इसलिए भाजपा के एक और धाकड़ आदिवासी नेता विजय शाह भी केबिनेट में जगह नही बना पाए। इसी तरह राजवर्धन सिंह दत्तिगांव को जातिगत फार्मूले और एंदल सिंह कंसाना तथा डंग को क्षेत्रवाद के चलते सरकार का हिस्सा बनने इंतेज़ार करना पड़ सकता है।हालांकि ये तय है कि इंतेज़ार लम्बा नही होगा। कोरोना के चलते लॉकडाउन हटने के साथ विस्तार में इन्हें जगह मिलने की संभावना है।
शिवराज सिंह चौहान जो अब तक वनमैन आर्मी की तरह कोरोना से प्रशासनिक लड़ाई लड़ रहे थे वो अब अपने पंच प्यारे के साथ कोरोना से जंग लड़ेंगे।
*राजेन्द्र ठाकुर*
(लेखक नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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