नशे की लत में "पिपरिया" का बचपन!
नशे की लत में "पिपरिया" का बचपन!
पिपरिया-:इन दिनों शहर में अवैध शराब के कारोबारियों पर पुलिस आये दिन छापे मार रही हैं।परंतु पुलिस उन लोगो के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही हैं।जो गरीब बच्चो को नशे का सामान बेच रहे हैं।दरअसल शहर के स्टेशन और झुग्गी बस्ती में रहने वाले गरीब बच्चे इन दिनों सिलोशन और व्हाइटनर का नशा करते हुए मुख्य चौराहे पर दिख जाते हैं।यह बच्चे एक कपड़े को बार बार सूँघते रहते हैं।इस कपड़े में ही टायर का पंचर जोड़ने वाला "सिलोशन" या लिखावट को सुधारने वाला "व्हाइटनर" लगा रहता हैं।जिसको बार बार मुंह से सूंघ कर बच्चे नशा कर करते हैं।यह गरीब बच्चे इस दौरान भीख भी मांगा करते हैं।जैसे ही 10-20 रुपये एकत्रित हुए यह नशे का सामान खरीद लेते हैं।वही कई बार तो 5-6 साल के बच्चे भी इस नशे को करते दिख जाते हैं।हाल ही में शहर के समाजसेवी और अधिवक्ता धर्मेंद्र नागवंशी ने ऐसे ही नशा कर रहे बच्चो की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की थी।वही शहर के जनप्रतिनिधीयों और समाजसेवियों को इस विषय में सब कुछ पता हैं परंतु वह इस ओर ध्यान नहीं देना चाहते हैं।दूसरी ओर शहर में कई ngo कार्यरत्त हैं जो सरकार से हर साल लाखों रुपये का फण्ड लेते हैं परंतु यह इस राशि का क्या करते हैं यह किसी को पता नहीं हैं।
पिपरिया-:इन दिनों शहर में अवैध शराब के कारोबारियों पर पुलिस आये दिन छापे मार रही हैं।परंतु पुलिस उन लोगो के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही हैं।जो गरीब बच्चो को नशे का सामान बेच रहे हैं।दरअसल शहर के स्टेशन और झुग्गी बस्ती में रहने वाले गरीब बच्चे इन दिनों सिलोशन और व्हाइटनर का नशा करते हुए मुख्य चौराहे पर दिख जाते हैं।यह बच्चे एक कपड़े को बार बार सूँघते रहते हैं।इस कपड़े में ही टायर का पंचर जोड़ने वाला "सिलोशन" या लिखावट को सुधारने वाला "व्हाइटनर" लगा रहता हैं।जिसको बार बार मुंह से सूंघ कर बच्चे नशा कर करते हैं।यह गरीब बच्चे इस दौरान भीख भी मांगा करते हैं।जैसे ही 10-20 रुपये एकत्रित हुए यह नशे का सामान खरीद लेते हैं।वही कई बार तो 5-6 साल के बच्चे भी इस नशे को करते दिख जाते हैं।हाल ही में शहर के समाजसेवी और अधिवक्ता धर्मेंद्र नागवंशी ने ऐसे ही नशा कर रहे बच्चो की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की थी।वही शहर के जनप्रतिनिधीयों और समाजसेवियों को इस विषय में सब कुछ पता हैं परंतु वह इस ओर ध्यान नहीं देना चाहते हैं।दूसरी ओर शहर में कई ngo कार्यरत्त हैं जो सरकार से हर साल लाखों रुपये का फण्ड लेते हैं परंतु यह इस राशि का क्या करते हैं यह किसी को पता नहीं हैं।
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