20 लाख टन गेहूं बेचने के विचार मंथन में ही व्यस्त अधिकारी!

 

“गेंहु के दाम आसमान पर”



इंदौर।पिछले 20 दिन में गेहूं की कीमतों में 7 प्रतिशत की वृद्धि और अप्रैल से लेकर अभी तक मिल क्वालिटी में 800 से 900 रुपए क्विंटल की तेजी को ऐतिहासिक कहा जा रहा है। इस तेजी को रोकने में खाद्य निगम एवं केंद्र सरकार असफल हो रही है।तब यह आशंका गहराने लगी है कि निगम के पास स्टॉक है भी अथवा नहीं है।आम जनता गेंहु के भारी संकट से गुजर रही है।केंद्र सरकार बिना सोच-विचार के 20 लाख टन गेहूं की बिक्री करें अन्यथा देश में हाहाकार मच जावे तब भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।सरकार को यह पता होना चाहिए कि यह संकट का सवाल या भूखे मरने की बात नहीं है। यदि गेंहु की इस तेजी ने विशाल रूप ग्रहण कर लिया तब वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समीप के देशों को गेहूं-चावल देने का आश्वासन दिया था और बहुत कुछ मात्रा में निर्यात किया भी गया है, फिर अचानक ऐतिहासक तेजी के बाद खाद्य सचिव यह कहे कि सरकार गेहूं और आटे के भावों को नियंत्रित करने के लिए शीघ्र कदम उठाएगी। आखिर इस तेजी से गरीब एवं मध्यम वर्ग के करोड़ों परिवार त्राहि-त्राहि करने लग गए हैं। राशन पर भी चावल अधिक मात्रा में दिया जा रहा है।गेहूं की आपूर्ति गेहूं से ही हो सकती है, चावल से नहीं।देश की आटा-मैदा मिलें पिछले दो माह से 20 लाख टन गेहूं खुले बाजार में विक्रय करने की मांग कर रही है। सरकार आंकड़ों के माध्यम से यह विश्वास दिला रही है कि 1 जनवरी 2023 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक की जगह अब अनुमानित शब्द का उपयोग कर बताया कि 171.7 लाख टन था। यह रणनीति भंडार की मात्रा से करीब 24.4 प्रतिशत अधिक है। केंद्रीय पूल में 117.7 लाख टन में से करीब 105 लाख टन गेंहु राज्य की एजेंसियों के पास है। जानकार वर्ग का स्पष्ट मत है कि राज्य की एजेंसियों के पास स्टॉक पर्याप्त मात्रा में हो सकता है।किंतु खाद्य निगम के पास 66.7 लाख टन का स्टॉक है, उसी में कमी आ सकती है।चूहों के खा जाने,अवैध रूप से बिक्री करना, वर्षों तक पड़े रह जाने से ,खराब हो जाना और कागजों पर वर्षों तक स्टॉक बताए जाना इस केंद्रीय एजेंसी के लिए सामान्य बात है।जिस एजेंसी के पास करोड़ों टन का स्टॉक वर्षों से चला रहा तो उसमें 20 से 30 लाख टन या इससे कम होना आम बात है।देश में गेहूं संकट के लिए केवल खाद्य निगम जवाबदार है।जिसने खाद्य मंत्रालय एवं केंद्र सरकार को भूलावे में रखा हो सकता है।जानकारों का मानना है कि हाल ही में खाद्य निगम के अधिकारियों के यहां छापामारी और बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी के आरोपों के बीच गेहूं के वास्तविक स्टॉक के स्तर को देखते हुए सरकार गेहूं के भावों में तूफानी तेजी के बाद अभी तक गेहूं की बिक्री आज तक शुरू नहीं कर सकी है।


-कीमतों को शीघ्र नियंत्रित किया जाएगा-

खाद्य सचिव ने हाल ही में कहा है कि गेहूं और आटे की कीमतें बड़ी है और सरकार शीघ्र ही बढ़ी कीमतों पर नियंत्रित करने के लिए कदम उठाएगी।सरकार नियमित रूप से इनकी निगरानी कर रही है।पता नहीं यह कैसी निगरानी है। बाजार में यह प्रचारित किया जा रहा है कि 20 जनवरी तक गेहूं की बोवनी 3.41 करोड़ हेक्टेयर में हो चुकी है, किंतु यह गेहूं तो मार्च-अप्रैल में आना शुरू होगा। सरकार 20 लाख टन गेहूं बेचेगी। कैसे बेचना इस पर मंथन चल रहा है। प्रतिमाह लाखों रुपए का वेतन लेने वाले अधिकारियों को मंथन करने में इतना समय क्यों लग रहा है, जिसमें केंद्र सरकार की साख दांव पर लग गई है।

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