आधे पानी में ही तैयार हो जाएगा 'दक्ष' धान, पैदावार पर नहीं पड़ेगा असर,

 


चंडीगढ़।नॉर्थ इंडिया को छोड़ दिया जाए तो देश के ज्यादातर हिस्सों में चावल बड़ी मात्रा में खाया जाता है। करीब 60 फीसदी आबादी इस पर निर्भर है।मिलेट्स या मोटा अनाज एक साइड अनाज हो सकता है लेकिन ये हमारे मुख्य खाने को बदल नहीं हो सकता।एक किलो चावल पैदा करने के लिए चार से पांच हजार लीटर पानी लगता है।देश में इतना पानी नहीं है।इसी चैलेंज को लेकर करीब एक दशक पहले काम शुरू किया था जिसका नतीजा है "दक्ष' । एक "एरोबिक" राइस वैरायटी जिसके कारण पानी करीब आधा लगता है और फसल का उत्पादन भी ज्यादा प्रभावित नहीं होता। ये जानकारी दी यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज, जीकेवीके कैंपस बेंगलुरु के प्रो एमएस शेशायी ने। वह नेशनल एग्रीकल्चर बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (नाबी) में हो रही इंटरनेशनल कान्फ्रेंस ऑन फूड एंड सिक्योरिटी में पार्टिसिपेट करने के लिए आए हुए थे। ये वैरायटी 2018 के अंत में कर्नाटक के किसानों के लिए रिलीज की गई है और करीब एक हजार एकड़ में हो रही है।

-पंजाब,हरियाणा में ट्रायल की ज़रूरत-

प्रो.शेशायी कहते हैं कि अगर आप मिलेट्स की बात करें तो दूसरे खाने की बात करें तो ये बहुत कम पानी में हो जाते हैं। मोटे अनाज के लिए तो 10 परसेंट पानी ही चाहिए। लेकिन चावल की बदल नहीं हो सकता। इसलिए पानी को "इकोनॉमाइज' करने की जरूरत है।ऐसे में क्यों न धान की फसल को इस तरीके से ट्रेंड किया कि वह अपना व्यवहार ही बदल लें।इस फसल को थोड़ा गहरा लगाना होता है।ये ऐसे इलाकों के लिए भी उपयुक्त है जिनमें पानी की जरूरत कम पड़ती है।ब्रीडिंग टेक्नोलॉजी से बनने वाली इस किस्म दक्ष में 50 फीसदी कम पानी में ये फसल हो जाती है।आम किस्मों में एक किलो चावल पैदा करने के लिए चार हजार लीटर पानी यूज होता है लेकिन इसमें दो हजार लीटर पानी की जरूरत रहती है।

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