सिकुड़ती नर्मदा की धार,हम सब है जिम्मेदार!


पिपरिया:-नवम्बर माह की 15 तारीख़ हो रही है।हर वर्ष इस नवम्बर महीने में जंहा नर्मदा का जल स्तर काफ़ी अच्छा रहता है।वही इस वर्ष माँ नर्मदा की धार दिन प्रति दिन सिकुड़ती जा रही है।नदी में लगातार पानी कम होता दिखाई दे रहा है।इससे नर्मदा में जगह-जगह रेत के टापू भी दिखने देने लगे है।माँ नर्मदा के प्रति अपनी गहरी आस्था रखने वाले श्रद्धालुओ का कहना है की हम पहली बार नवम्बर में पानी का इतना कम स्तर देख रहे है।सांडिया-सिवनि पुल के हालात यह है की यंहा पैदल ही नर्मदा नदी को पार किया जा सकता है।नदी में अपनी आस्था रखने वालों का कहना है की यदि समय रहते सरकार ने कोई उपाय नहीं किए तो नर्मदा अपने अस्तित्व को खो देगी।

भक्त भी है ज़िम्मेदार

नर्मदा नदी को देवी के रूप में माना जाता है।इसके किनारों पर हर दिन पूजन-पाठ किया जाता है।इस दौरान नदी किनारे जम कर प्रदूषण होने के साथ ही साथ प्लास्टिक के कचरे को फेंक दिया जाता है।नर्मदा घाटों पर भंडारे व अन्य आयोजनो में भी प्लास्टिक की सामग्री में खाना परोसा जाता है।जिसे कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद तटों पर ही छोड़ दिया जाता है।नर्मदा के भक्त परंपरा के नाम पर अपने घरों से निकलने वाली पूजन सामग्री को भी नदी में ठंडा करने के नाम पर लाखों टन कचरा बहा दिया करते है।जिससे अब नदी के अस्तित्व पर संकट बन रहा है।परंतु नर्मदा भक्त अभी भी जागृत होने को तैयार नहीं दिखते है।वह परंपरा एवं आस्था के नाम पर नर्मदा नदी में मनमाना कचरा बहा रहे है।जिसके परिणाम स्वरूप नदी की धार सिकुड़ती जा रही है।

मशीनो से हो रहा अवैध उत्खनन

एक ओर जंहा नर्मदा भक्त पूजन-पाठ के नाम पर प्रदूषण फैला रहे है तो वही दूसरी ओर रेत माफिया पवित्र नदी में प्रतिबंध के बाद भी मशीनो से रेत का अवैध उत्खनन कर नदी को खोखला करने में जुटे है।इस अवैध उत्खनन को रोकने की जिम्मेदारी जिन के कंधो पर है वो ही इस रेत उत्खनन के खेल में शामिल हो कर माँ नर्मदा के अस्तित्व को ही ख़त्म करने में जुटे है।

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