सरकार मानती है की 18 से 44 साल के सभी लोगों पर स्मार्ट फ़ोन है!

 

राजवर्धन बल्दुआ,भोपाल

“बर्बादे गुलिंस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है यंहा हर शाख़ पर उल्लू बैठे है अंजामें गुलिस्ताँ क्या होगा” यह पंक्ति महामारी के इस कठिन दौर में हमारे स्वास्थ्य विभाग के ऊपर बिलकुल सही बैठती है।देश का स्वास्थ्य विभाग कोविड के ख़िलाफ़ चल रहे टीकाकरण अभियान में रोज़ाना नए-नए नियम लागू कर देता है।जब देश में कोरोना से इतनी सारी मौतें हो रही है तब अचानक से स्वास्थ्य अमला जागता है और कोविशिल्ड़ नामक वैक्सीन के दूसरे डोज़ को लगवाने के समय को कई हफ़्ते आगे कर देता है।वही देश के यही कर्णधार मानते है की देश की आबादी में 18 वर्ष से 44 वर्ष तक के सभी नागरिक पूरी तरह से पढ़े लिखे ही नहीं है।वह स्मार्ट फ़ोन भी रखते है और उसको चलाना भी बखूबी से जानते है।तभी तो वर्तमान में चल रहे टीकाकरण अभियान में 44+वाले नागरिकों को सीधे टीकाकरण केंद्र पर आधार कार्ड साथ ले जाने पर वैक्सीन लग रही है।परंतु जब देश के प्रधानमंत्री 18+वाले युवाओं को वैक्सीन लगाने की घोषणा करते है तो देश उम्मीदों से जाग जाता है परंतु निष्करीय सिस्टम इसमें भी नियम एवं शर्तों को लागू कर देता है।



फिर 18 से 44 वर्ष वालों के लिए विभिन्न ऐप के माध्यम से टीके का समय व दिनांक सहित स्लाट बुक कराने का फ़ार्मूला लागू कर दिया जाता है।इसको लागू करने वालों का मानना है की देश का हर युवा अपने पास स्मार्ट फ़ोन रखने के साथ ही तकनीक में पारंगत है।जिससे वह फटाफट ऑन लाइन स्लाट बुक कर देगा।जिम्मेदारो की आशंका सही साबित हुई और जैसे ही 18+के टीका लगाने का समय आया विभिन्न मोबाइल ऐप-वेब साइट सभी पर भारी स्लाट बुक कर दिए गय।टीकाकरण केंद्रो पर टीका लगाने वालों की लिस्ट कुछ इस तरह चस्पा की गई जैसे पहले किसी नौकरी में भर्ती का परिणाम चस्पा किया जाता था।कोविड के ख़िलाफ़ उत्साही युवा टीकाकरण केंद्र पर उस लिस्ट में अपना नाम खोजने उमड़ पड़े बस इसी भीड़ को दिखा कर “अफ़सरशाही” ने हमारे “हुक्मरानो”से ईनाम में शाबाशी पा ली।परंतु असली परेशानी उन युवाओं को हुई जो न तो स्मार्ट फ़ोन चला सकते है न ही उनके बूते में स्मार्ट फ़ोन का खर्चा है।अब वह भी टीकाकरण केंद्रो पर पहुँचने लगे जंहा से उन्हें यह कह कर भगा दिया गया की ऑन लाइन स्लाट बुक करे।वही कई केंद्रो पर तो जिनके नाम लिस्ट में थे उनके 50 प्रतिशत युवा भी टीके लगवाने नहीं आए परंतु मजाल है किसी की जो बिना अपाईंटमेंट किसी युवा को टीका लगा दिया जाए।यह सिस्टम में लगी हुई जंग है जिसके कारण टीकाकरण केंद्रो से टीके वापिस जा रहे है परंतु किसी को लग नहीं रहे है।अब हमारे हुकूमरानो को यह समझना होगा की भारत जैसे गरीब देश में ऐसे पढ़े-लिखे “उल्लुओं”द्वारा बनाए गए नियमो के सहारे कितने वर्षों तक यह टीकाकरण अभियान पूरा हो पाएगा।क़ब भारत कोविड मुक्त हो पाएगा क्योंकि हमारी लालफ़ीताशाही अभी भी उसी ढर्रे पर काम कर रही है जो कोविड फ़्री था।

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