हम 1 साल में न तो नए अस्पताल बना सके न नए शमशान घाट!

 

:-राजवर्धन बल्दुआ की कलम से:-

देश भर में कोरोना ने भयावह रूप धारण कर लिया है।आम आदमी दवाइयों से लेकर आक्सीजन तक को तरस गया है।हर कही से डरावनी तस्वीरें और वीडियो आए दिन सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहे है।कही शमशान में वेटिंग है तो कही कई लाशों को एक साथ एक ही चिता पर जलना पड़ रहा है।कोरोना को हिंदुस्तान में आए क़रीब 1 साल से ज़्यादा का वक़्त बीत चुका है।इसकी पहली लहर ने जंहा हज़ारों लोगों की ज़िंदगी को ख़त्म कर दिया तो वही कई महीनो के लॉक डाउन ने देश की अर्थ व्यवस्था को तक चौपट कर दिया था।परंतु इसके बाद भी सरकारों ने उन दिनो से कोई सीख नहीं ली और अब कोरोना की दूसरी लहर ने आम जनता को बर्बाद सा कर दिया है।जनता अकेली कोरोना से लड़ने और मरने को मजबूर दिख रही है।



अब तो लगता है की देश के हर कोने में आम आदमी को सरकारों ने अकेला छोड़ दिया है।सिर्फ़ आँकड़ो की जादूगरी के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है।लालफ़ीताशाही हमारे नेताओ को गुमराह कर रही है तो वही जिनको हमने संसद से विधानसभा तक चुन कर भेजा था वह अब भी चुनावों में व्यस्त नज़र आ रहे है।देश में हर दिन हाई लेवल बैठक कोरोना की स्थिति को नियंत्रण करने के लिए की जा रही है।सरकारें घोषणा भी बहुत कर रही है परंतु उन पर अमल नहीं किया जा रहा है।कोरोना का टेस्ट कराने के लिए आम आदमी को कई दिनो तक सरकारी अस्पताल के चक्कर काटने पड़ रहे है तो वही निजी लैब इस टेस्ट के 2 हज़ार से 3 हज़ार वसूल रही है।जबकि सरकार इस टेस्ट के 300 रुपए तय करने का दंभ भर रही है।परंतु मेडिकल माफिया आम आदमी को इस नियम पर सिर्फ़ दुत्कार के भगा रहा है।गंभीर कोरोंना मरीज़ों को लगने वाले रेमिसियर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी सबके सामने हो रही है।अब तो निजी चिकित्सालय में भर्ती मरीज़ों के परिजनों से बोला जा रहा है की यह इंजेक्शन आपको कही से भी ला कर देना होगा।आदमी भी मरता क्या न करता वाली कहानी पर चल कर अस्पतालों के फ़रमान मान रहा है।वही इन निजी अस्पतालों के लिए भी कोरोना इलाज संबंधी दरो को सरकार ने तय किया है।इनमे सैंकड़ा बिस्तरों को ग़रीबों के लिए आरक्षित करन का दम सरकारें भर रही है।परंतु सरकारी को छोड़ निजी हॉस्पिटल में कही भी ऐसा इलाज देखने को नहीं मिल रहा है।दूसरी ओर देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे है वंहा कही भी कोरोना की लहर तो छोड़िए माहौल तक नहीं दिख रहा है।यंहा दिख रही है तो राजनैतिक पार्टी की लहर जो देश का नेशनल मीडिया तक दिखा रहा है।वही आम जनता का कहना है की कोरोना ने सरकारों को 1 साल का समय दिया ताकि वह इससे लड़ने के लिए नए अस्पताल बना सके परंतु सरकारों ने कोई तैयारी नहीं की जबकि दूसरे देशों में बड़े बड़े अस्पतालों का निर्माण कराया गया।कोरोना की त्रासदी को झेल रहे ग़रीबों का कहना है कि सरकारें अस्पताल बनाने में असमर्थ दिख रही है।ऐसे में यदि वह अपने अपने राज्यों में नए शमशान ही बनवा देती तो हम लोग सम्मान से मर तो सकते थे।जनता की मांग है की नए नए इलेक्ट्रिक शमशानो का निर्माण कराया जाए जिससे इलाज के अभाव में मर रहे मरीज़ों का अंतिम संस्कार इनमे किया जा सके और परिजन इस अंतिम संस्कार को तो देख सके और उसमें शामिल भी हो सकें।

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