कंपनी की हर भाव में धान खरीदी की मंशा थी तो फिर सादे कागजों पर किसानों से अनुबंध क्यों!



पिपरिया-:हाल ही में धान के भाव 3 हजार रुपये से ज्यादा होने पर इलाके में अनुबंध खेती करा रही कंपनियों ने किसानों से धान खरीदी बन्द कर दी थी।इन्ही में से एक फार्च्यून कंपनी के प्रतिनिधियों ने तो किसानों के फोन तक उठाना बन्द कर दिया था।इसकी शिकायत किसानों ने पिपरिया SDM से की और अनुबंध के कागज दिखाए जो की सादे कागजो पर ही थे।परन्तु इसके बाद भी SDM नितिन टाले ने संज्ञान ले कर वरिष्ठ अधिकारियों से मार्गदर्शन लिया वही अखबारों के माध्यम से मामला मुख्यमंत्री  कार्यालय तक पहुंच गया था।जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हस्तक्षेप के बाद जिला प्रशासन ने फार्च्यून कंपनी के कर्ताधर्ता को बुलवाया और बढ़े हुए दामो पर धान खरीदने को कहा गया।बहरहाल इस पूरे मामले में कई सवाल उठ रहे हैं कि यदि फार्च्यून कम्पनी की मंशा हर कीमत में धान खरीदने की हैं तो फिर कंपनी सादे कागजो पर किसानों से धान खरीदी का अनुबंध क्यों कर रही थी।जबकि धान खरीदने वाली कंपनियों को नोटरी कागजो पर अनुबंध करना चाहिए।जिससे यदि कोई कानूनी पचड़ा पड़ता हैं तो पीड़ित किसान और कंपनी दोनों ही कोर्ट की शरण ले सके।वही इस तरह के अनुबंध की जानकारी सरकारी विभागों को थी या नहीं।

परंतु पिपरिया ही नहीं जिले भर में ऐसी ही दर्जनों कंपनियां किसानों को बहला फुसला कर इस तरह से सादे कागजो पर धान खरीदने का अनुबंध कर 3 माह पहले ही कर चुकी हैं।जानकारों की माने तो इस तरह के अनुबंध कोर्ट-कचहरी में रद्दी कागज साबित होते हैं।कृषी विभाग को भी इस बात से कोई लेना देना नहीं दिखाई देता हैं कि किसानों के साथ कौन सी कंपनी क्या कर रही हैं।जबकि मैदानी दौरा करने वाले कृषी विभाग को यह सब पता होना चाहिए।परंतु जिले का कृषी विभाग किसानों से ज्यादा कंपनी हितों का ध्यान रख कर काम करता हुआ दिखाई दिया करता हैं।इलाके के कई कीटनाशक दवा विक्रेताओं के माध्यम से इस तरह की ढेरो कंपनियां किसानों को ग़ुमराह कर फर्जी अनुबंध कर रही हैं।वो तो भला हो सूबे के किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का जिनके संज्ञान में यह मामला आया और किसानों को न्याय मिल सका।

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