टूट गई 150 साल से भी ज्यादा पुरानी परंपरा, पचमढी नागद्वारी में नहीं हुई पूजन-अर्चन !


पचमढ़ी।कोरोना महामारी के चलते अब कई 100 साल पुरानी परंपरा भी टूटने लगी हैं।एक और नागपंचमी पर पचमढी के नागद्वारी गुफा में लगने वाले मेले में जंहा लाखों श्रद्धालु हर साल आया करते थे।आज वंहा पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ हैं।करीब 150 साल से भी ज्यादा समय में पहली बार नागद्वारी में नागपंचमी के अवसर पर किसी भी तरह की पूजन-अर्चन नहीं हुई।तहसीलदार राजेश बौरासी ने बताया कि कोरोना के चलते इस बार नागद्वारी मेला निरस्त करने का निर्णय लिया गया था।चूंकि नागद्वारी गुफा काफी घने जंगल में स्थित हैं।ऐसे में वंहा जाने की इजाजत किसी को नहें दी गई हैं।वही इस परंपरा के टूटने से पचमढी के स्थानीय नागरिकों में रोष व्याप्त हैं।भाजपा नेता कलम धुत का कहना हैं कि महादेव मेला समिति की जवाबदारी थी कि वह कोरोना संकट के नियमो  का पालन करते हुए गुफा में सरकारी पूजा कराती।इस तरह की बात मैंने उठाई थी।
मेले से सरकार को आय होती हैं।इस बार मेला नहीं लगा तो भगवान को भी भूल गए।पचमढी की बहुत पुरानी परंपरा टूटने का दुख हैं।
केंटुमेंट बोर्ड के पूर्व अद्यक्ष एवं महादेव मेला समिति के सदस्य संतोष जैन ने बताया कि उनके दादा उनको नागद्वारी मेला का किस्सा सुनाया करते थे।श्री जैन के अनुसार उनके दादा 1885 में पचमढी आये और मेला स्थल पर दुकान लगाते थे।वही उस समय तो कुंआ बादरा की ओर से ज्यादा श्रद्धालु आते थे।जैन बताते हैं कि उनने किताबों में पढ़ा हैं कि महाराष्ट्रीयन शासक तात्या टोपे एवं राजा भभूत सिंह जब मुगलों और अंग्रेजो से लड़ाई करते थे तो वह इन्ही घने जंगलों में जा कर छिपते थे।नागद्वारी गुफा में भी इन लोगों ने पूजन अर्चन किया हैं।श्री जैन के अनुसार तो नागद्वारी का मेला करीब 200 साल से भी ज्यादा पुराना हैं।जैन ने भी इस बार लॉक डाउन के चलते नागपंचमी पर पूजन नहीं होने पर निराशा व्यक्त की हैं।वही इलाके के भाजपा विधायक ठाकुरदास नागवंशी का कहना हैं कि लॉक डाउन में हमें पुरानी परंपरा का भी धयान रखना होगा।नागद्वार लाखों भक्तो की आस्था का केंद्र हैं।सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर समिति को कम से कम नागपंचमी पर तो पूजन कराना था।देश के प्रमुख मंदिरों में जैसे नियम पालन कर पूजन हो रही हैं।वह नागद्वारी में भी हो सकती थी।श्री नागवंशी ने इस मामले में जिला कलेक्टर से बात करने का कहा हैं।

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