लचर नेतृत्व और दिग्विजय की रिमोर्ट पालिटिक्स से गई कमलनाथ सरकार


(राजेन्द्र ठाकुर)
अंततः शुक्रवार को एक हफ्ते से वेंटिलेटर पर चल रही कमलनाथ सरकार के जाते ही 15 साल का वनवास भोगकर सत्ता में आये कांग्रेसी 15 महीने में ही वापस विपक्ष में पहुंच गए। सरकार आती जाती रहती है लेकिन ये तख्ता पलट एक इतिहास बन गया और इसके सूत्रधार बने 2018 में बनी कांग्रेस सरकार  के जननायक ज्योतिरादित्य सिंधिया जो पार्टी उपेक्षा से आहत होकर अब भाजपा के नेता हो गए है। ये राजनैतिक घटना इतिहास में इसलिए भी याद रखी जायेगी की दलबदल कानून लागू होने के बाबजूद सिंधिया के सम्मान की लड़ाई में उनके अनुयायी इतनी बड़ी संख्या में उनके साथ खड़े दिखे ,छह केबिनेट मंत्री सोलह विधायक अपनी विधानसभा की  सदस्यता गंवाने पर आमादा हो ये किसी भी नेता के गर्वानुभूति की बात है। क्योंकि पूर्व में अर्जुन सिंह और उमा भारती का हश्र देकर लगता नही था कि किसी नेता के पार्टी छोड़ने पर विधायक भी पार्टी छोड़ सकते है,शायद यहीं दिग्विजय सिंह ने सिंधिया को अंडरस्टीमेट कर गए उन्हें ये इल्म नही था कि सिंधिया की लोकप्रियता  जितनी आमजन में है उससे ज्यादा  समर्थकों में सिंधिया के प्रति एकलव्यनिष्ठा है। दिग्विजय सिंह द्वारा सिंधिया को अंडरस्टीमेट करने की यही भूल सरकार को ले डूबी।

 हम सबने बहुत कुछ देखा इस हफ्ते भर के राजनैतिक ड्रामे में जो विधायकों और मंत्रियों का तिरस्कार कर रहे थे वही कांग्रेस नेता बाद में नाराज विधायकों से उत्तम क्षमा की अरदास करते नज़र आये। इस तख्त पलट ने कांग्रेस पार्टी के अंदरखाने की कई बातें बाहर उजागर कर दी।असन्तोष क्यो उपजा? क्या कुछ कांग्रेस कर सकती थी जो उसने नही किया? किसकी हठधर्मिता चली और किसका गुरुर चकनाचूर हुआ ।किसने अपनी ताकत का अहसास कराया और कौन शतरंज की बिसात पर मात खा गया। सबके अपने कयास और सबकी अपनी रणनीति। पर अंतिम सच जो सामने आया वो यही कि 15 साल बाद बनी कांग्रेस सरकार 15 महीने में चली गई। ये पहला अवसर है जब किसी राष्ट्रीय पार्टी की सरकार पर संकट हो और एक हफ्ते तक पार्टी आलाकमान पंगु बना तमाशबीन बना रहा हो। जो कांग्रेस पार्टी पार्षद तक की टिकट में कहती है जो हाईकमान तय करेगा वही होगा ,उसी कांग्रेस के आलाकमान को इस पूरे हफ्ते में एक बार भी पार्टी विधायक,नेता या संगठन पदाधिकारी ने याद तक नही किया। पार्टी हाईकमान को दरकिनार कर सारी बागडोर दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने अपने हाथ में ले ली थी ऐसा लगा कि कांग्रेस अब दिग्विजय सिंह प्रायवेट लिमिटेड हो गई, पार्टी के अन्य बड़े नेता चाहे गांधी परिवार के विश्वसनीय माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी हो या अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह हो या पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव हो या फिर हर छोटे से छोटे फैसले पर हाईकमान का डर दिखाने वाले प्रदेश संगठन प्रभारी दीपक बाबरिया हो सारे नेता इस समय फ्रेम से बाहर ही दिखे। नाराज विधायक को मनाने भी दिग्विजय सिंह खुद गए जो जानते थे कि नाराजगी की बजह भी वही है यानि आग बुझाने पेट्रोल का प्रयोग । हाँ नाराज विधायकों को मनाने अपनी चिठ्ठी में दिग्विजय सिंह ने हाईकमान का हवाला भर दिया पर दिग्विजय सिंह उस सवाल का जबाव नही दे पाए जो बागी बिसाहूलाल सिंह ने दागा था कि आखिर हाईकमान की मंशा के बावजूद  इतने सीनियर विधायक को मंत्रीमंडल में जगह क्यो नही मिली थी। दरअसल असंतोष का बीज तो मंत्रिमंडल गठन के साथ ही बो दिया गया था जब असंतुलित मंत्री परिषद बनाई जिसमें योग्यता और वरिष्ठता को दरकिनार कर दिया गया और वंशवाद को दहरीज दी गई । बिसाहूलाल सिंह,केपी सिंह,एंदल सिंह जैसे वरिष्ठ और राजवर्धन सिंह दत्तीगांव जैसे योग्य विधायक मंत्रिमंडल में जगह नही पा सके वही कमलेश्वर पटेल , जयवर्द्धन सिंह, प्रियव्रत सिंह खींची ,सचिन यादव और उमंग सिंघार सिर्फ अपने परिजनों के नाम से मंत्रिपरिषद का हिस्सा बन गए। यहां दिग्विजय सिंह ने अपने बेटे और भतीजे को मंत्री परिषद में रसूखदार बनाने पूरा मंत्रिमंडल ही कबीना करा दिया ताकि जूनियर होने के बावजूद दोनों केबिनेट मंत्री बन सके। बीच बीच में कई बार  ये आरोप लगे कि दिग्विजय सिंह अपने इशारे पर सरकार चला रहे है।उनके बंगले पर लगने वाली ब्यूरोक्रेट्स की भीड़ भी यही इंगित करती रही यहां तक कि उमंग सिंघार ने तो सार्वजनिक रूप से दिग्विजय सिंह पर आरोप भी लगाए । ताज़ा घटनाक्रम में कांग्रेस प्रवक्ता मुकेश नायक ने एक खबरिया चेनल में जो बात रखी उससे में भी इत्तेफाक रखता हूँ कि दिग्विजय सिंह ने दिल्ली को भरमाया कि सिंधिया के साथ कोई नही और भोपाल में उन्हें चिढ़ाने की हरकतों को हवा दी जिससे आखिरकार सिंधिया को अपने मान,सम्मानऔर स्वाभिमान के लिए वो रास्ता चुनना पड़ा जिससे पूरी कांग्रेस की जड़े हिलाकर रख दी। एक सवाल ये भी अनुरूत्तर रहा कि जब इतनी संख्या में विधायक मुख्यमंत्री से नाराज थे तो सत्ता बचाने नेतृत्व परिवर्तन के विकल्प पर किसी ने भी एक बार भी आवाज़ क्यो नही उठाई? और न ही हाईकमान ने इस दिशा में सोचा क्योंकि अभी तक कई प्रदेश में जब भी इस तरह की राजनैतिक परिस्थिति निर्मित होती रही तो अक्सर सभी राजनैतिक दल नेतृत्व परिवर्तन के समझौता फार्मूले से इसका हल निकालते आये है।अपने प्रदेश में भी कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल पूर्व में कई बार इस तरह के विकल्प से सरकार के संकट हल कर चुकी है परंतु इस बार ऐसा नही हुआ क्योकि टीम  दिग्विजय का एकमात्र लक्ष्य  सिंधिया को दरकिनार करना था और हाईकमान के साथ साथ विधायकों को भी भरमा रखा था कि बीजेपी से भी क्रॉस वोटिंग होगी इसलिए कमलनाथ के इस्तीफे के चंद मिनिट पहले तक विधायकगण  मीडिया से बोलते नज़र आये कि फ्लोर टेस्ट जीतेंगे। दिग्विजय सिंह की रिमोर्टकन्ट्रोल से सरकार चलाने की महत्वकांक्षी इच्छा और लचर कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरकार कमलनाथ सरकार की बलि ले ली।और ज्योतिरादित्य सिंधिया किंग मेकर बनने जा रहे है। इतिहास याद रखेगा कि  1967 में जब डीपी मिश्रा जैसे शक्तिशाली मुख्यमंत्री ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया को अपमानित करने का प्रयास किया था तो कांग्रेस सरकार की बलि चढ़ी थी और संविद सरकार बनी थी।इस बार दिग्विजय सिंह के इशारे पर कमलनाथ ने वही प्रयास किया तो इतिहास की पुनरावर्त्ति हुई और इस बार राजमाता के पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा की सरकार बनने का रास्ता प्रस्तत किया।
(लेखक : सिंधिया समर्थक कांग्रेसी थे जो अब कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके है।)

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