सुप्रीम कोर्ट ने भी माना प्राकृतिक रूप से नष्ट कर दी गई पचमढी!


*राजवर्धन बल्दुआ की रिपोर्ट*
नई दिल्ली-:देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी एक केस की सुनवाई के दौरान यह माना हैं कि मध्य प्रदेश में पचमढी के जंगलों और प्राकृतिक स्वरूप को कुछ बलशाली लोगों ने नष्ट कर दिया हैं।शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस दीपक गुप्ता ने गोवा में 2015 में पारित शीर्ष अदालत के आदेश में सुधार के लिए दायर आवेदन पर सुनवाई के दौरान कही।इसमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कह रहे थे कि गोवा में 62 प्रतिशत वन हैं जो देश भर के औसत से ज्यादा हैं।इस पर सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों न्यायाधीशों का कहना था कि यह बहुत अच्छी बात हैं परन्तु इसके आधार पर हम गोवा में वनों की कटाई की अनुमति नहीं दे सकते हैं।
अदालत ने 4 फरवरी 2015 को निर्देश दिया था कि गोवा में प्राधिकारी किसी भी एक भूखण्ड के स्वरूप को बदलने के लिए NOC नहीं देंगे जंहा प्राकृतिक वनस्पतियों सहित घने पेड़ हैं।इस पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हमें कल ही बताया गया हैं कि ऐसे ही मध्य प्रदेश की पचमढी नष्ट हो चुकी हैं।पीठ के अनुसार हम ऐसे राजनीतिज्ञों के खिलाफ़ हैं जो हमारे आदेशों को अपने स्वार्थों की खातिर इस्तेमाल करते हैं।वही हमारे (पिपरिया पीपुल्स) सूत्रों की माने तो पचमढी मध्य प्रदेश का एक मात्र हिल स्टेशन होने के साथ ही सतुपडा टाइगर रिजर्व पार्क में बसा हुआ हैं।पचमढी में सुप्रीम कोर्ट की नव निर्माण पर रोक के बाद भी घने जंगलों के बीच बसे इस हिल स्टेशन में प्रभावशाली नेताओ ने अपने आलीशान होटल और रिसॉर्ट बना करोड़ो के वारे न्यारे कर रखे हैं।इन व्यावसायिक इमारतों का रैनेवेशन की परमिशन के नाम पर धड़ल्ले से नया और भव्य निर्माण किया जा रहा हैं।पचमढी में अवैध निर्माण न हो इसकी जवाबदारी छावनी परिषद पचमढी की हैं परंतु यंहा भ्रस्टाचार का बोल बाला हैं।जिसके चलते ही रिनोवेशन के नाम पर यंहा कांग्रेस-भाजपा नेताओं के साथ ही आरएसएस के प्रभावशाली नेताओ के आलीशान होटल अतिक्रमण में तक तन गए हैं।दूसरी ओर सतपुड़ा के घने जंगलों में भी टाइगर रिजर्व के अधिकारी स्थाननीय नेताओ के साथ व्यवसायिक पार्टनरशिप करके उन गांवों में रिसॉर्ट बना रहे हैं।जंहा पर पेड़ से गिरी लकड़ी को भी कोई नहीं उठा सकता हैं।जबकि इस टाइगर रिजर्व पार्क से हाल ही में हजारो आदिवासियों को सिर्फ इसलिए विस्तापित कर दिया गया कि टाइगर रिजर्व में शेरों की संख्या और पर्यटन को बढ़ाना हैं।
परन्तु इस सब के बाद भी सूबे की कांग्रेस सरकार आंख मूंद कर बैठी हुई हैं।अब देखना हैं कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिपण्णी के बाद राज्य का वन और राजस्व महकमा पचमढी को बचाने के लिए क्या कदम उठाएगा।

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