पिपरिया में विलुप्त होते "किसान नेता"!

पिपरिया में विलुप्त होते "किसान नेता"!

पिपरिया-:पिछले 2 दशकों से विधानसभा सीट पर उपजे किसान नेता इन दिनों विलुप्त होने की कगार पर हैं।पहले यह किसान नेता सरकार और प्रशासन के सामने किसानों की आवाज को बुलंद किया करते थे।परंतु न जाने किस "बीमारीं" के कारण अब यह विलुप्त होते जा रहे हैं।बड़े बड़े बैनर-पोस्टरों में अपने नाम के आगे-पीछे किसान नेता लिखवाने वालो को आज कल खुद किसान समाज तलाश रहा हैं।दरअसल इन दिनों किसान समाज को अपनी उपज बेचने के लिए मण्डी में काफी जद्दोजहद करना पड़ रहा हैं।वही उपज बिकने के बाद भुगतान के लिए समितियों के ढेरों चक्कर लगाना पड़ता हैं।भुगतान आने के बाद भी बैंकों से 25-30 हजार तक कैश मिल रहा है।इन सभी परेशानियों को सरकार तक पहुँचाने के लिए तेज तर्रार किसान नेताओ की सख्त इन दिनों सख्त आवश्यकता हैं परंतु किसान नेता न जाने कंहा विलुप्त हो गए हैं।विशेषज्ञों की माने तो इलाके के किसान नेताओ को सरकार ने अपने पाले में मिला लिया हैं।जो अब सरकार के गुणगान गाने में व्यस्त हो चुके हैं।वही सत्ताधारी दल के किसान नेता सत्ता की मलाई खाने में व्यस्त हैं।जो कि किसानों की यह बात तक नहीं उठा पा रहे हैं कि किसानों के घरों में शादी हैं तो सरकार को किसानों का खुद का जमा धन  आसानी से उनको ही देना चाहिए।वही अपने बेटी-बेटा की शादी के लिए बैंक से पैसा निकालने पहुंच रहे किसान सरकार को जम कर गरिया रहे हैं।जबकि सूबे की "शिवराज" सरकार ने किसानों को खुश करने के लिए पिछले वर्ष के गेंहू-धान खरीदी पर 200 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया हैं।किसानों का यह  बोनस भी खाते में डल चुका हैं परंतु बैंक उनको समुचित कैश नहीं दे रही हैं।जिससे किसानों में सरकार के खिलाफ रोष व्याप्त हैं।वही इन किसानों के हजारों वोट लेकर जीते जनप्रतिनिधी भी इस समस्या पर इसलिए गंभीर नहीं हैं क्योंकि उनकी जीत रिकार्ड 52 हजार वोटों से हुई थी।जिसके बाद वह तीसरी बार अपनी टिकिट और जीत दोनों पक्की मान रहे हैं।

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